अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 71/ मन्त्र 14
अ॒स्मे धे॑हि॒ श्रवो॑ बृ॒हद्द्यु॒म्नं स॑हस्र॒सात॑मम्। इन्द्र॒ ता र॒थिनी॒रिषः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्मे इति॑ । धे॒हि॒ । श्रव॑: । बृ॒हत् । द्यु॒म्नम् । स॒ह॒स्र॒ऽसात॑मम् ॥ इन्द्र॑ । ता: । र॒थिनी॑: । इष॑: ॥७१.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्मे धेहि श्रवो बृहद्द्युम्नं सहस्रसातमम्। इन्द्र ता रथिनीरिषः ॥
स्वर रहित पद पाठअस्मे इति । धेहि । श्रव: । बृहत् । द्युम्नम् । सहस्रऽसातमम् ॥ इन्द्र । ता: । रथिनी: । इष: ॥७१.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्रः) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले जगदीश्वर] (अस्मे) हमको (बृहत्) बढ़ता हुआ (श्रवः) सुनने योग्य धन और (सहस्रसातमम्) सहस्रों सुखों का देनेवाला (द्युम्नम्) चमकता हुआ यश और (ताः) वे [प्रसिद्ध] (रथिनी) रथों [यान विमान आदि] वाली (इषः) चलती हुई सेनाएँ (धेहि) दे ॥१४॥
भावार्थ
मनुष्य परमात्मा की प्रार्थनापूर्वक बहुत धन, कीर्ति और सेना के संग्रह से शत्रुओं का नाश करके सुख को प्राप्त होवें ॥१४॥
टिप्पणी
१४−(अस्मे) अस्मभ्यम् (धेहि) देहि (श्रवः) श्रवणीयं धनम् (बृहत्) वर्धमानम् (द्युम्नम्) अ० ६।३।३। द्योतमानं यशः (सहस्रसातमम्) जनसनखनक्रमगमो विट्। पा० ३।२।६७। षणु दाने-विट्। विड्वनोरनुनासिकस्यात्। पा० ६।४।४१। नकारस्य आकारः, ततस्तमप्। अतिशयेन सहस्रसुखप्रदम् (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् जगदीश्वर (ताः) प्रसिद्धाः (रथिनीः) बहुयानविमानादियुक्ताः (इषः) इष गतौ-क्विप्। गतिशीलाः सेनाः ॥
विषय
द्युम्न, श्रवः, रथिनी, इषः
पदार्थ
१. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (अस्मे) = हमारे लिए (श्रवः) = श्रवणीय-यशस्वी धन को (धेहि) = धारण कीजिए, जो धन (बृहत्) = वृद्धि का कारण बने, (द्युम्नम्) = ज्ञान की ज्योतिवाला हो, (सहस्त्रसातमम्) = सहस्रों के साथ संविभागपूर्वक सेवनीय हो-जिस धन को हम अकेले ही नहीं खा जाते। २. हे प्रभो! हमारे लिए (ता:) = उन (इषः) = अन्नों को प्राप्त कराइए, जोकि (रथिनी:) = उत्तम शरीररूप रथोंवाले हैं-जिनके द्वारा शरीररूप रथ उत्तम बनता है।
भावार्थ
प्रभु हमें यशस्वी व ज्ञानज्योति को बढ़ानेवाला धन दें तथा उन उत्तम अन्नों को प्राप्त कराएँ जिनके द्वारा हम शरीर-रथ को उत्तम बना सकें।
भाषार्थ
(इन्द्र) हे परमेश्वर! (अस्मे) हमें (श्रवः) यशस्वी (बृहत् द्युम्नम्) आध्यात्मिक-महाधन दीजिए, जो कि (सहस्रसातमम्) हजारों सुख देता है। (रथिनीः) और शरीर-रथ के रथी जीवात्मा की (ताः) उन प्रसिद्ध आध्यात्मिक (इषः) अभिलाषाओं को सफल कीजिए।
विषय
परमेश्वर।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! हे बाधक शत्रुओं के निवारक राजन् ! तू (अस्मे) हमें (बृहत श्रवः) बड़ा यश, अन्न, ज्ञान, बल और (सहस्रसातमम्) सहस्रों भोगों के देने वाले (द्युम्नम्) ऐश्वर्य को (धेहि) प्रदान कर। और (ताः) वे (रथिनीः) रथों, वाहनों से युक्त (इषः) सेनाएं और (रथिनीः = रसिनीः इषः) भीतरी ब्रह्मरस से युक्त प्रेरणाएं और उत्तम रस से युक्त अन्नादि खाद्य पदार्थ प्रदान कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—मधुच्छन्दाः। देवता—इन्द्रः॥ छन्दः—गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम॥
इंग्लिश (4)
Subject
In dr a Devata
Meaning
Indra, lord of honour, wealth and power, grant us great honour and knowledge, wealth and happiness of a thousand sort, a strong economy and a mighty force of chariots (moving on land and sea and in the air).
Translation
O Almighty God, grant us high fame, grant us riches of thousand advantages and grant us these armies which are equipped with chariots.
Translation
O Almighty God, grant us high fame, grant us riches of thousand advantages and grant us these armies which are equipped with chariots.
Translation
O Mighty Lord of all bounties, shower on us the immense glory, food grains, knowledge and strength and wealth, capable of affording thousands of comforts and joys. Also give us these armies, which are fully equipped with all means of transport, or those keen inner impulses which may be full of Divine Bliss.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(अस्मे) अस्मभ्यम् (धेहि) देहि (श्रवः) श्रवणीयं धनम् (बृहत्) वर्धमानम् (द्युम्नम्) अ० ६।३।३। द्योतमानं यशः (सहस्रसातमम्) जनसनखनक्रमगमो विट्। पा० ३।२।६७। षणु दाने-विट्। विड्वनोरनुनासिकस्यात्। पा० ६।४।४१। नकारस्य आकारः, ततस्तमप्। अतिशयेन सहस्रसुखप्रदम् (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् जगदीश्वर (ताः) प्रसिद्धाः (रथिनीः) बहुयानविमानादियुक्ताः (इषः) इष गतौ-क्विप्। गतिशीलाः सेनाः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যকর্ত্যব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(ইন্দ্রঃ) হে ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যবান্ জগদীশ্বর] (অস্মে) আমাদের (বৃহৎ) বর্ধিষ্ণু (শ্রবঃ) শ্রবণ যোগ্য ধন ও (সহস্রসাতমম্) সহস্র সুখ প্রদানকারী (দ্যুম্নম্) দোত্যমান যশ এবং (তাঃ) সেই [প্রসিদ্ধ] (রথিনী) রথ [যান বিমান আদি] যুক্ত (ইষঃ) গতিশীল সেনাদল (ধেহি) প্রেরণ করুন ॥১৪॥
भावार्थ
মনুষ্য পরমাত্মার প্রার্থনাপূর্বক বহু ধন, কীর্তি এবং সেনা সংগ্রহ করে শত্রুদের বিনাশ করে সুখ প্রাপ্ত হোক ॥১৪॥
भाषार्थ
(ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (অস্মে) আমাদের (শ্রবঃ) যশস্বী (বৃহৎ দ্যুম্নম্) আধ্যাত্মিক-মহাধন প্রদান করুন, যা (সহস্রসাতমম্) সহস্র সুখ প্রদান করে। (রথিনীঃ) এবং শরীর-রথের রথী জীবাত্মার (তাঃ) সেই প্রসিদ্ধ আধ্যাত্মিক (ইষঃ) অভিলাষাকে সফল করুন।
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