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  • यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 16
    ऋषिः - अत्रिर्ऋषिः देवता - गृहपतिर्देवता छन्दः - विराट आर्षी त्रिष्टुप्, स्वरः - धैवतः
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    सं वर्च॑सा॒ पय॑सा॒ सं त॒नूभि॒रग॑न्महि॒ मन॑सा॒ सꣳशि॒वेन॑। त्वष्टा॑ सु॒दत्रो॒ विद॑धातु॒ रायोऽनु॑मार्ष्टु त॒न्वो यद्विलि॑ष्टम्॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम्। वर्च॑सा। पय॑सा। सम्। त॒नूभिः॑। अग॑न्महि। मन॑सा। सम्। शि॒वेन॑। त्वष्टा॑। सु॒दत्र॒ इति॑ सु॒ऽदत्रः॑। वि। द॒धा॒तु॒। रायः॑। अनु॑। मा॒र्ष्टु॒। त॒न्वः᳖। यत्। विलि॑ष्ट॒मिति॒ विऽलि॑ष्टम् ॥१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सँवर्चसा पयसा सन्तनूभिरगन्महि मनसा सँ शिवेन । त्वष्टा सुदत्रो विदधातु रायोनु मार्ष्टु तन्वो यद्विलिष्टम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सम्। वर्चसा। पयसा। सम्। तनूभिः। अगन्महि। मनसा। सम्। शिवेन। त्वष्टा। सुदत्र इति सुऽदत्रः। वि। दधातु। रायः। अनु। मार्ष्टु। तन्वः। यत्। विलिष्टमिति विऽलिष्टम्॥१६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 8; मन्त्र » 16
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    भाषार्थ -
    हे आप्त विद्वानो! आपकी सुमतिमें प्रवृत्त हुये हम लोग--जो हमारे मध्य में श्रेष्ठ (सुदत्रः) उत्तम ज्ञान का दाता, (त्वष्टा) अविद्या का विच्छेदन करने वाला विद्वान् हमारे लिये (संवर्चसा) तेजोयुक्त दिन तथा (पयसा) रात्रि से, (संतनूभिः) बलवान् शरीरों वाले विद्वानों से, (संशिवेन) सुखदायक (मनसा) मनन से जिन (रायः) विद्या आदि धनों का (विदधातु) विधान करे और जो (तन्वः) शरीर के (विलिष्टम्) रोम आदि मलों का लेश है उसे (अनुमार्ष्टु) बार-बार शुद्ध करो । उक्त दिन आदि साधनों से उक्त धनों को प्राप्त करें तथा उक्त मल को साफ करें ।। ८ । १६ ।।

    भावार्थ - सब मनुष्य दिन-रात आप्त विद्वानों के संग से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को उत्तम रीति से सिद्ध करें ।। ८ । १६ ।।

    भाष्यसार - मित्रों का कर्त्तव्य--आप्त विद्वान् लोग गृहस्थ जनों के मित्र होते हैं। अतः उनकी सम्मति के अनुसार कार्यों में प्रवृत्त होकर गृहस्थ लोग दिन-रात बलवान् आप्त विद्वानों के संग से तथा कल्याणकारी मन से विद्या आदि धनों एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को सिद्ध करें। शरीर के सब मलों का मार्जन करें ।। ८ । १६ ।।

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