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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 29
    ऋषिः - गृत्समद ऋषिः देवता - वायुर्देवता छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः
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    नि॒युत्वा॑न् वाय॒वा ग॑ह्य॒यꣳ शु॒क्रोऽ अ॑यामि ते। गन्ता॑सि सुन्व॒तो गृ॒हम्॥२९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नि॒युत्वा॑न्। वा॒यो॒ इति॑ वायो। आ। ग॒हि॒। अ॒यम्। शु॒क्रः। अ॒या॒मि॒। ते॒। गन्ता॑। अ॒सि॒। सु॒न्व॒तः। गृ॒हम् ॥२९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नियुत्वान्वायवागह्ययँ शुक्रोऽअयामि ते । गन्तासि सुन्वतो गृहम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नियुत्वान्। वायो इति वायो। आ। गहि। अयम्। शुक्रः। अयामि। ते। गन्ता। असि। सुन्वतः। गृहम्॥२९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 29
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    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा वायू सर्वांची शुद्धी करणारा, सर्वत्र पसरणारा, सर्वांना प्राणापेक्षा प्रिय असतो तसाच ईश्वरही असतो.

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