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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 2

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 2/ मन्त्र 1
    सूक्त - सिन्धुद्वीपम् देवता - आपः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - आपः सूक्त

    शं त॒ आपो॑ हैमव॒तीः शमु॑ ते सन्तू॒त्स्याः। शं ते॑ सनिष्य॒दा आपः॒ शमु॑ ते सन्तु व॒र्ष्याः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम्। ते॒। आपः॑। है॒म॒ऽव॒तीः। शम्। ऊं॒ इति॑। ते॒। स॒न्तु॒। उ॒त्स्याः᳡। शम्। ते॒। स॒नि॒स्यदाः॑। आपः॑। शम्। ऊं॒ इति॑। ते॒। स॒न्तु॒। व॒र्ष्याः᳡ ॥२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं त आपो हैमवतीः शमु ते सन्तूत्स्याः। शं ते सनिष्यदा आपः शमु ते सन्तु वर्ष्याः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। ते। आपः। हैमऽवतीः। शम्। ऊं इति। ते। सन्तु। उत्स्याः। शम्। ते। सनिस्यदाः। आपः। शम्। ऊं इति। ते। सन्तु। वर्ष्याः ॥२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 2; मन्त्र » 1

    टिप्पणीः - १−(शम्) शान्तिप्रदाः (ते) तुभ्यम् (आपः) जलानि (हैमवतीः) तत आगतः। पा० ४।३।७४। इत्यण्। हैमवत्यः। हिमवद्भ्यः पर्वतेभ्य उत्पन्नाः (शम्) (उ) चार्थे (ते) (सन्तु) (उत्स्याः) उत्सः कूपनाम-निघ० ३।२३। कूपेषु भवाः (सनिष्यदाः) स्यन्दू प्रस्रवणे−यङ्, अच्, यङ्लुकि निगागमः। सर्वदाः स्यन्दमानाः। शीघ्रं स्रवन्त्यः (वर्ष्याः) वर्षासु भवाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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