यजुर्वेद - अध्याय 37/ मन्त्र 21
अहः॑ के॒तुना॑ जुषता सु॒ज्योति॒र्ज्योति॑षा॒ स्वाहा॑।रात्रिः॑ के॒तुना॑ जुषता सु॒ज्योति॒र्ज्योति॑षा॒ स्वाहा॑॥२१॥
स्वर सहित पद पाठअह॒रित्यहः॑। के॒तुना॑। जु॒ष॒ता॒म्। सु॒ज्योति॒रिति॑ सु॒ऽज्योतिः॑। ज्योति॑षा। स्वाहा॑ ॥ रात्रिः॑। के॒तुना॑। जु॒ष॒ता॒म्। सु॒ज्योति॒रिति॑ सु॒ऽज्योतिः॑। ज्योति॑षा। स्वाहा॑ ॥२१ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अहः केतुना जुषताँ सुज्योतिर्ज्यातिषा स्वाहा । रात्रिः केतुना जुषताँ सुज्योतिर्ज्यातिषा स्वाहा॥
स्वर रहित पद पाठ
अहरित्यहः। केतुना। जुषताम्। सुज्योतिरिति सुऽज्योतिः। ज्योतिषा। स्वाहा॥ रात्रिः। केतुना। जुषताम्। सुज्योतिरिति सुऽज्योतिः। ज्योतिषा। स्वाहा॥२१॥
पदार्थ -
अध्याय की समाप्ति पर प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि [१] (अहः) = दिन (केतुना) = प्रज्ञा से- प्रकाश से जुषताम् सेवित हो। हमारा दिन प्रकाशमय बीते । सारा दिन नाना क्रियाओं में व्यापृत होते हुए भी हम कभी उलझन में न पड़ें। (सुज्योतिः) = हम उत्तम ज्योतिवाले हों। दिन हमारे ज्ञान को बढ़ानेवाला हो। अवकाश के समय को स्वाध्याय में बिताते हुए हम अपनी ज्ञान की ज्योति को बढ़ानेवाले बनें। (ज्योतिषा) = इस ज्योति के हेतु से स्वाहा- हम स्वार्थ त्यागवाले बनते हैं। स्वार्थ की भावनाएँ हमारे जीवन को कुछ भोगप्रवण बनाकर अन्ततः अन्धकारमय कर देती हैं, अतः प्रकाश के हेतु हम स्वार्थ को छोड़ते हैं । [२] (रात्रिः) = दिनभर के काम के बाद विश्राम देकर (रमयित्री) = आनन्द देनेवाली यह रात भी (केतुना) = प्रज्ञा व प्रकाश से (जुषताम्) = सेवित हो । स्वप्न में सब इन्द्रिय-वृत्तियों के केन्द्रित हो जाने से हम प्रभु - दर्शन करनेवाले बनें । (सुज्योतिः) = रात्रि के समय भी हम उत्तम ज्योतिवाले हों । ज्योतिवाले होते हुए हम स्वप्न में भी अभद्र को अपने में प्रविष्ट न होने दें, स्वप्न में भी पाप न कर बैठें। (ज्योतिषा) = इस ज्योति के हेतु से ही हम (स्वाहा) = स्वार्थ को छोड़ते हैं। स्वार्थ से ऊपर उठने पर हमारे दिन-रात चौबीसों घण्टे प्रकाशमय होंगे। [३] इस प्रकाश में निवास करनेवाला व्यक्ति कभी भी न्यायमार्ग से विचलित नहीं होता है, (न थर्वति) = डाँवाँडोल नहीं होता। बड़े-से-बड़े प्रलोभन भी इसे डिगानेवाले नहीं होते। न डिगने के कारण यह आथर्वण' कहलाता है।
भावार्थ - भावार्थ - क्या दिन और क्या रात, हम सदा प्रकाश में विचरनेवाले बनें। उत्तम ज्योतिवाले होते हुए सदा न्यायमार्ग से चलें।
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