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यजुर्वेद अध्याय - 37
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  • यजुर्वेद - अध्याय 37/ मन्त्र 21
    ऋषि: - आथर्वण ऋषिः देवता - ईश्वरो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    44

    अहः॑ के॒तुना॑ जुषता सु॒ज्योति॒र्ज्योति॑षा॒ स्वाहा॑।रात्रिः॑ के॒तुना॑ जुषता सु॒ज्योति॒र्ज्योति॑षा॒ स्वाहा॑॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अह॒रित्यहः॑। के॒तुना॑। जु॒ष॒ता॒म्। सु॒ज्योति॒रिति॑ सु॒ऽज्योतिः॑। ज्योति॑षा। स्वाहा॑ ॥ रात्रिः॑। के॒तुना॑। जु॒ष॒ता॒म्। सु॒ज्योति॒रिति॑ सु॒ऽज्योतिः॑। ज्योति॑षा। स्वाहा॑ ॥२१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अहः केतुना जुषताँ सुज्योतिर्ज्यातिषा स्वाहा । रात्रिः केतुना जुषताँ सुज्योतिर्ज्यातिषा स्वाहा॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अहरित्यहः। केतुना। जुषताम्। सुज्योतिरिति सुऽज्योतिः। ज्योतिषा। स्वाहा॥ रात्रिः। केतुना। जुषताम्। सुज्योतिरिति सुऽज्योतिः। ज्योतिषा। स्वाहा॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 37; मन्त्र » 21
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे विद्वन् विदुषि स्त्रि वा! भवती स्वाहा केतुना ज्योतिषा चाहः सुज्योतिर्जुषतां स्वाहा केतुना ज्योतिषा सह सुज्योती रात्रिरस्मान् जुषताम्॥२१॥

    पदार्थः

    (अहः) दिनम् (केतुना) जागरूकेण ज्ञानेन जागृतावस्थया (जुषताम्) सेवताम् (सुज्योतिः) विद्याप्रकाशम् (ज्योतिषा) सूर्यादिप्रकाशेन वा धर्मादिप्रकाशेन (स्वाहा) सत्यया क्रियया (रात्रिः) (केतुना) प्रज्ञया सुकर्मणा वा (जुषताम्) (सुज्योतिः) (ज्योतिषा) प्रकाशेन सह (स्वाहा) सत्यया वाचा॥२१॥

    भावार्थः

    ये स्त्रीपुरुषा दिवास्वापं रात्रावतिजागरणं विहाय युक्ताहारविहारा ईश्वरोपासनतत्परा भवेयुस्तानहर्निशं सुखकरं वस्तु प्राप्नोति। अतो यथा प्रज्ञा वर्द्धेत तथानुष्ठातव्यमिति॥२१॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् वा विदुषी स्त्रि! आप (स्वाहा) सत्य क्रिया से (केतुना) उत्कट ज्ञान वा जागृत अवस्था से और (ज्योतिषा) सूर्य्यादि वा धर्मादि के प्रकाश से (अहः, सुज्योतिः) दिन और विद्या को (जुषताम्) सेवन कीजिये (स्वाहा) सत्य वाणी (केतुना) बुद्धि वा सुन्दर कर्म और (ज्योतिषा) प्रकाश के साथ (सुज्योतिः) सुन्दर ज्योतियुक्त (रात्रिः) रात्रि हमको (जुषताम्) सेवन करे॥२१॥

    भावार्थ

    जो स्त्री-पुरुष दिन के सोने और रात्रि के अति जागने को छोड़ युक्त आहार-विहार करनेहारे ईश्वर की उपासना में तत्पर होवें, उनको दिन-रात सुखकर वस्तु प्राप्त होती है। इससे जैसे बुद्धि बढ़े, वैसा अनुष्ठान करना चाहिये॥२१॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे स्री, पुरुष दिवसा झोपणे व रात्री जागरण करणे या गोष्टी टाळून युक्त आहार, विहार करतात व ईश्वराची उपासना करण्यात तत्पर असतात. त्यांचे दिवस व रात्र सुखकारक होतात. त्यासाठी बुद्धीत वाढ होईल असे अनुष्ठान करावे.

    English (2)

    Meaning

    O learned person or woman, enjoy nicely day and knowledge, in a wide awake manner, in the light of the Sun and Dharma, May night full of brightness, with her lustre, intelligence and action serve us excellently.

    Meaning

    May the day, our wakeful state of the soul, join with knowledge, and may the light of our knowledge join with the light divine in truth of word and deed. May the night, our dream-and-sleep state of the mind, join with knowledge, and may the light of knowledge join with the light divine in truth of word and deed.

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