यजुर्वेद - अध्याय 37/ मन्त्र 11
ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः
देवता - सविता देवता
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
93
य॒माय॑ त्वा म॒खाय॑ त्वा॒ सूर्य्य॑स्य त्वा॒ तप॑से।दे॒वस्त्वा॑ सवि॒ता मध्वा॑नक्तु पृथि॒व्याः सꣳस्पृश॑स्पाहि।अ॒र्चिर॑सि शो॒चिर॑सि॒ तपो॑ऽसि॥११॥
स्वर सहित पद पाठय॒माय॑। त्वा॒। म॒खाय॑। त्वा॒। सूर्य्य॑स्य। त्वा॒। तप॑से। दे॒वः। त्वा॒। स॒वि॒ता। मध्वा॑। अ॒न॒क्तु॒। पृ॒थि॒व्याः। स॒ꣳस्पृश॒ इति॑ स॒म्ऽस्पृशः॑। पा॒हि॒। अ॒र्चिः। अ॒सि॒। शो॒चिः। अ॒सि॒। तपः॑। अ॒सि॒ ॥११ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यमाय त्वा मखाय त्वा सूर्यस्य त्वा तपसे देवस्त्वा सविता मध्वानक्तु पृथिव्याः सँस्पृशस्पाहि । अर्चिरसि शोचिरसि तपो सि ॥
स्वर रहित पद पाठ
यमाय। त्वा। मखाय। त्वा। सूर्य्यस्य। त्वा। तपसे। देवः। त्वा। सविता। मध्वा। अनक्तु। पृथिव्याः। सꣳस्पृश इति सम्ऽस्पृशः। पाहि। अर्चिः। असि। शोचिः। असि। तपः। असि॥११॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ सज्जनाः कीदृशा भवन्तीत्याह॥
अन्वयः
हे विद्वन्! सविता देवो मखाय यमाय त्वा सूर्यस्य तपसे त्वा गृह्णातु, पृथिव्यास्त्वा मध्वाऽनक्तु, स त्वं संस्पृशः पाहि, यतस्त्वमर्चिरसि शोचिरसि तपोऽसि तस्मात् त्वा सत्कुर्य्याम॥११॥
पदार्थः
(यमाय) (त्वा) त्वाम् (मखाय) न्यायानुष्ठानाय (त्वा) (सूर्यस्य) प्रेरकस्येश्वरस्य (त्वा) (तपसे) धर्मानुष्ठानाय (देवः) दाता (त्वा) (सविता) ऐश्वर्यकर्त्ता (मध्वा) मधुरेण (अनक्तु) संयुनक्तु (पृथिव्याः) भूमेः (संस्पृशः) सम्यक् स्पर्शात् (पाहि) (अर्चिः) प्रदीप्तिः (असि) (शोचिः) शोचिरिव पवित्रः (असि) (तपः) धर्मे श्रमकर्त्ता (असि)॥११॥
भावार्थः
ये न्यायव्यवहारेण प्रदीप्तयशसो भवन्ति, ते दुःखस्पर्शत् पृथग् भूत्वा तेजस्विनो भवन्ति, दुष्टान् परिताप्य श्रेष्ठान् सुखयन्ति च॥११॥
हिन्दी (3)
विषय
अब सज्जन कैसे होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे विद्वन्! (सविता) ऐश्वर्य्यकर्त्ता (देवः) दानशील पुरुष (मखाय) न्याय के अनुष्ठान के लिये (यमाय) नियम के अर्थ (त्वा) आपको (सूर्यस्य) प्रेरक ईश्वरसम्बन्धी (तपसे) धर्म के अनुष्ठान के लिये (त्वा) आपको ग्रहण करे। (पृथिव्याः) भूमिसम्बन्धी (त्वा) आपको (मध्वा) मधुरता से (अनक्तु) संयुक्त करे सो आप (संस्पृशः) सम्यक् स्पर्श से (पाहि) रक्षा कीजिये, जिस कारण आप (अर्चिः) तेजस्वी (असि) हैं, (शोचिः) अग्नि की लपट के तुल्य पवित्र (असि) हैं और (तपः) धर्म में श्रम करनेहारे (असि) हैं, इससे (त्वा) आपका सत्कार करें॥११॥
भावार्थ
जो लोग यथार्थ व्यवहार से प्रकाशित कीर्तिवाले होते हैं, वे दुःख के स्पर्श से अलग होकर तेजस्वी होते हैं और दुष्टों को दुःख देकर श्रेष्ठों को सुखी करते हैं॥११॥
विषय
अश्व,शकृत् से धूपन का रहस्य।
भावार्थ
हे विद्वन् ! वीर पुरुष ! ( यमाय ) सूर्य जिस प्रकार ग्रह, उपग्रहों और पृथ्वी आदि को अपने नियम में रखता है उसी प्रकार - समस्त राष्ट्र को नियम में रखने वाले पद के लिये (त्वा मखाय) पूजनीय उत्तम प्रजापति पद के लिये तुझको (सूर्यस्य तपसे त्वा) सूर्य के समान -संतापन करने में समर्थ 'तपस्' पद के लिये नियुक्त करता हूँ । ( सविता ) - सर्वोत्पादक, सर्वप्रेरक, परमेश्वर (त्वा) तुझको ( मध्वा) मधुर अन्न भादि ऐश्वर्य और शत्रुपीड़क बल से (आनक्तु ) युक्त करे । हे विद्वन् ! तु उस चीर पुरुष को ( पृथिव्याः संस्पृशः) भूमि पर स्पर्श होने से अर्थात् उसे - सामान्य जनों में अनाहत होने से ( पाहि) बचा । अथवा हे राजन् ! तु राष्ट्र की पृथिवी पर आक्रमण करने वाले शत्रु से बचा । तू (अर्चि: असि) अग्नि की ज्वाला के समान दाहकारी है । (शोचिः असि) विद्युत् की दीप्ति के समान संतापकारी है । तू (तपः असि) सूर्य के ताप के समान तपस्वी, संतापकारी और धर्मात्मा है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
दध्यङ् आथर्वणः । धर्मः सविता | त्रिष्टुप् । धैवतः
विषय
संयम, यज्ञ व तप
पदार्थ
प्रस्तुत मन्त्र में 'दध्यङ' से प्रभु कहते हैं कि १. (त्वा) = तुझे मैंने इस संसार में (यमाय) = संयम के लिए रक्खा है। तेरा जीवन आत्मसंयमवाला हो । संसार के विषय तेरी इन्द्रियों व मन को सदा अपनी ओर आकृष्ट करेंगे, तूने उनमें आसक्त नहीं हो जाना। २. (त्वा) = तुझे मैंने मखाय यज्ञ के लिए इस संसार में भेजा है। तूने अपना जीवन यज्ञमय बनाने का प्रयत्न करना। यज्ञ 'मख' है [मा+ख] यह तेरे सब दोषों को दूर करेगा। यज्ञ करने पर दोष तुझमें आएँगे ही नहीं। ३. (त्वा) = तुझे (सूर्यस्य तपसे) = सूर्य के तप के लिए मैंने निश्चित किया है। तूने सूर्य के समान ही तपस्वी होना है। सूर्य ने एक बार घोड़े रथ में जोते, तो खोले ही नहीं। यह सूर्य निरन्तर क्रियाशील है, यह आराम नहीं करता। तूने भी सतत क्रियाशील बनना है, आराम नहीं करने लगना, क्रियाशीलता ही तप है, यह तुझे दीप्त करेगी, सूर्य की तरह चमकानेवाली होगी ४. सविता (देवः) = सबका प्रेरक, दिव्यता का पुञ्ज प्रभु (त्वा) = तुझे (मध्वा) = माधुर्य से (अनक्तु) = अलंकृत करे। तेरा जीवन 'संयत, यज्ञमय व क्रियाशील' होने के साथ माधुर्य से परिपूर्ण हो । तू किसी के प्रति कटु शब्दों का प्रयोग करनेवाला न हो। ५. (पृथिव्याः) = पृथिवी के (संस्पृशः) = संस्पर्श से (पाहि) = अपने को तू बचा। तू इन पार्थिव भोगों में आसक्त न हो जा। ये भोग तुझे भोगनेवाले प्रमाणित होंगे। तू इनमें आसक्त हुआ कि इनका शिकार हुआ। ५. यदि तू इस प्रकार पार्थिव भोगों में न फँसा तो सचमुच तू (अर्चिः असि) = [अर्च पूजायाम्] सच्चा पुजारी है। प्रभु की उपासना का सबसे प्रबल प्रमाण पार्थिव पदार्थों में प्रसक्त न होना ही है। (शोचि: असि) = [शुच्] तू अपने जीवन को पवित्र बनानेवाला है। पार्थिव भोगों में आसक्ति ही सब अपवित्रता का मूल है। (तपः असि) = पार्थिव भोगों में न फँसा तो तू सचमुच तपस्वी है। भोगासक्ति से ऊपर उठना महान् तपस्या है। 'तपस्वी होना' भोगासक्ति के अभाव का स्वरूप है, इसका परिणाम पवित्रता है और इससे स्वतः हो जानेवाली क्रिया प्रभुपूजा है।
भावार्थ
भावार्थ - हम 'संयमी, यज्ञमय, क्रियाशील, माधुर्य से परिपूर्ण, पार्थिव भोगों के प्रति अनासक्त तथा प्रभुपूजक, पवित्र व तपस्वी बनें।
मराठी (2)
भावार्थ
जे लोक यथार्थ व्यवहार करतात ते कीर्तितान होतात. त्यांना दुःखाचा स्पर्शही होत नाही उलट ते तेजस्वी बनतात. दुष्टांना दुःख देऊन ते श्रेष्ठांना सुखी करतात.
विषय
सज्जन कसे असतात, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे विद्वान, (सरिता) तो ऐश्वर्यवान आणि (देवः) दानशील पुरूष (मखाय) (तू करीत असलेल्या) यज्ञासाठी आणि (यमाय) त्याच्या नियम-नियमनासाठी (त्वा) आपणाला (स्वीकारीत आहे) तसेच (सूर्यस्य) सर्वांचा प्रेरक जो ईश्वर त्याच्या उपासनेसाठी व (तपसे) धर्मानुष्ठानासाठी (त्वा) तो आपला स्वीकार करो (पृथिव्याः) भूमीविषयी (त्वा) आपणाला (मध्वा) माधुर्यभावनेने (अनक्तु) संयुक्त करो. (तुम्हाला त्या दानी पुरूषाने प्रेमाने वागवावे) आपण आपल्या (संस्पृशः) सम्यक स्पर्शाद्वारे (सहवासाद्वारे) (पाहि) आमची रक्षा करा-कारण आपण (अर्चिः) तेजस्वी (असि) आहात आणि (शोचिः) अग्नीच्या ज्वालेप्रमाणे पवित्र (असि) आहात तसेच (तपः) धर्माविषयी कष्ट सोसणारे (असि) आहात. यामुळे (त्वा) आम्ही आपला सत्कार करतो. ॥11॥
भावार्थ
भावार्थ -जे मनुष्य योग्य आचरण करीत कीर्तीवंत होतात, त्यांना दुःखाचा स्पर्श होत नाही (ते कधी दुःखी होत नाहींत, एवढेच नव्हे तर ते दुष्टांना पीडित करून श्रेष्ठजनांना सुखी करतात. ॥11॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O learned person, a glorious, charitable man, receives thee for the administration of justice, for the observance of religious obligations, and for the performance of religious practices as ordained by God. May he unite thee with the sweetness of worldly objects, but protect thyself from their evil attachment. As thou art noble, pure like the flame of fire, and embedded in religious austerity, hence we pay thee homage.
Meaning
For law and social justice, for yajna and social cooperation, and for the discipline of piety in the service of the Sun, light of the universe, may the self-effulgent Savita, creator and generator of life, bless you with the honey-sweets of the earth. Protect yourself and us from the pollution of sin. You are the light of brilliance. You are the light of purity. You are the tempering fire of the austerity of Dharma.
Translation
(I dedicate) you to the controlling Lord. (1) You to the sacrifice. (2) You to the brilliance of the sun. (3) May the creator Lord balm you with honey. (4) Save us from the contaminations of the earth. (5) You are the flame; you are the glow; you are the heat. (6)
Notes
Yamaya, to the controller Lord. Also, to the Lord of death. Tapase, to the brilliance or heat. Samspṛśaḥ, from contamination. Arciḥ, flame. Socih, glow. Tapah, heat.
बंगाली (1)
विषय
অথ সজ্জনাঃ কীদৃশা ভবন্তীত্যাহ ॥
এখন সজ্জন কেমন হয়, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে বিদ্বন্ ! (সবিতা) ঐশ্বর্য্যকর্ত্তা (দেবঃ) দানশীল পুরুষ (মখায়) ন্যায়ের অনুষ্ঠান হেতু (য়মায়) নিয়মের জন্য (ত্বা) আপনাকে (সূর্য়স্য) প্রেরক ঈশ্বর সম্পর্কীয় (তপসে) ধর্মের অনুষ্ঠানের জন্য (ত্বা) আপনাকে গ্রহণ করুক । (পৃথিব্যাঃ) ভূমিসম্পর্কীয় (ত্বা) আপনাকে (মধ্ব) মধুরতা পূর্বক (অনক্তু) সংযুক্ত করিবে, সুতরাং আপনি (সংস্পৃশঃ) সম্যক্ স্পর্শ দ্বারা (পাহি) রক্ষা করুন যে কারণে আপনি (অর্চিঃ) তেজস্বী (অসি) আছেন, (শোচিঃ) অগ্নির শিখার তুল্য পবিত্র (অসি) এবং (তপঃ) ধর্মে শ্রমকারী (অসি) হন, ইহা দ্বারা আপনাকে সৎকার করুক ॥ ১১ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যাহারা যথার্থ ব্যবহার দ্বারা প্রকাশিত কীর্ত্তিযুক্ত হন তাহারা দুঃখের স্পর্শ দ্বারা পৃথক হইয়া তেজস্বী হন এবং দুষ্টদিগকে দুঃখ দিয়া শ্রেষ্ঠদিগকে সুখী করেন ॥ ১১ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
য়॒মায়॑ ত্বা ম॒খায়॑ ত্বা॒ সূর্য়্য॑স্য ত্বা॒ তপ॑সে ।
দে॒বস্ত্বা॑ সবি॒তা মধ্বা॑নক্তু পৃথি॒ব্যাঃ সꣳস্পৃশ॑স্পাহি ।
অ॒র্চির॑সি শো॒চির॑সি॒ তপো॑ऽসি ॥ ১১ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
য়মায়েত্যস্য দধ্যঙ্ঙাথর্বণ ঋষিঃ । সবিতা দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal