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यजुर्वेद अध्याय - 37
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  • यजुर्वेद - अध्याय 37/ मन्त्र 11
    ऋषि: - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    40

    य॒माय॑ त्वा म॒खाय॑ त्वा॒ सूर्य्य॑स्य त्वा॒ तप॑से।दे॒वस्त्वा॑ सवि॒ता मध्वा॑नक्तु पृथि॒व्याः सꣳस्पृश॑स्पाहि।अ॒र्चिर॑सि शो॒चिर॑सि॒ तपो॑ऽसि॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒माय॑। त्वा॒। म॒खाय॑। त्वा॒। सूर्य्य॑स्य। त्वा॒। तप॑से। दे॒वः। त्वा॒। स॒वि॒ता। मध्वा॑। अ॒न॒क्तु॒। पृ॒थि॒व्याः। स॒ꣳस्पृश॒ इति॑ स॒म्ऽस्पृशः॑। पा॒हि॒। अ॒र्चिः। अ॒सि॒। शो॒चिः। अ॒सि॒। तपः॑। अ॒सि॒ ॥११ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमाय त्वा मखाय त्वा सूर्यस्य त्वा तपसे देवस्त्वा सविता मध्वानक्तु पृथिव्याः सँस्पृशस्पाहि । अर्चिरसि शोचिरसि तपो सि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यमाय। त्वा। मखाय। त्वा। सूर्य्यस्य। त्वा। तपसे। देवः। त्वा। सविता। मध्वा। अनक्तु। पृथिव्याः। सꣳस्पृश इति सम्ऽस्पृशः। पाहि। अर्चिः। असि। शोचिः। असि। तपः। असि॥११॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 37; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सज्जनाः कीदृशा भवन्तीत्याह॥

    अन्वयः

    हे विद्वन्! सविता देवो मखाय यमाय त्वा सूर्यस्य तपसे त्वा गृह्णातु, पृथिव्यास्त्वा मध्वाऽनक्तु, स त्वं संस्पृशः पाहि, यतस्त्वमर्चिरसि शोचिरसि तपोऽसि तस्मात् त्वा सत्कुर्य्याम॥११॥

    पदार्थः

    (यमाय) (त्वा) त्वाम् (मखाय) न्यायानुष्ठानाय (त्वा) (सूर्यस्य) प्रेरकस्येश्वरस्य (त्वा) (तपसे) धर्मानुष्ठानाय (देवः) दाता (त्वा) (सविता) ऐश्वर्यकर्त्ता (मध्वा) मधुरेण (अनक्तु) संयुनक्तु (पृथिव्याः) भूमेः (संस्पृशः) सम्यक् स्पर्शात् (पाहि) (अर्चिः) प्रदीप्तिः (असि) (शोचिः) शोचिरिव पवित्रः (असि) (तपः) धर्मे श्रमकर्त्ता (असि)॥११॥

    भावार्थः

    ये न्यायव्यवहारेण प्रदीप्तयशसो भवन्ति, ते दुःखस्पर्शत् पृथग् भूत्वा तेजस्विनो भवन्ति, दुष्टान् परिताप्य श्रेष्ठान् सुखयन्ति च॥११॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    अब सज्जन कैसे होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे विद्वन्! (सविता) ऐश्वर्य्यकर्त्ता (देवः) दानशील पुरुष (मखाय) न्याय के अनुष्ठान के लिये (यमाय) नियम के अर्थ (त्वा) आपको (सूर्यस्य) प्रेरक ईश्वरसम्बन्धी (तपसे) धर्म के अनुष्ठान के लिये (त्वा) आपको ग्रहण करे। (पृथिव्याः) भूमिसम्बन्धी (त्वा) आपको (मध्वा) मधुरता से (अनक्तु) संयुक्त करे सो आप (संस्पृशः) सम्यक् स्पर्श से (पाहि) रक्षा कीजिये, जिस कारण आप (अर्चिः) तेजस्वी (असि) हैं, (शोचिः) अग्नि की लपट के तुल्य पवित्र (असि) हैं और (तपः) धर्म में श्रम करनेहारे (असि) हैं, इससे (त्वा) आपका सत्कार करें॥११॥

    भावार्थ

    जो लोग यथार्थ व्यवहार से प्रकाशित कीर्तिवाले होते हैं, वे दुःख के स्पर्श से अलग होकर तेजस्वी होते हैं और दुष्टों को दुःख देकर श्रेष्ठों को सुखी करते हैं॥११॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक यथार्थ व्यवहार करतात ते कीर्तितान होतात. त्यांना दुःखाचा स्पर्शही होत नाही उलट ते तेजस्वी बनतात. दुष्टांना दुःख देऊन ते श्रेष्ठांना सुखी करतात.

    English (2)

    Meaning

    O learned person, a glorious, charitable man, receives thee for the administration of justice, for the observance of religious obligations, and for the performance of religious practices as ordained by God. May he unite thee with the sweetness of worldly objects, but protect thyself from their evil attachment. As thou art noble, pure like the flame of fire, and embedded in religious austerity, hence we pay thee homage.

    Meaning

    For law and social justice, for yajna and social cooperation, and for the discipline of piety in the service of the Sun, light of the universe, may the self-effulgent Savita, creator and generator of life, bless you with the honey-sweets of the earth. Protect yourself and us from the pollution of sin. You are the light of brilliance. You are the light of purity. You are the tempering fire of the austerity of Dharma.

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