अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 6/ मन्त्र 12
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - निचृत बृहती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
इ॑तिहा॒सस्य॑ च॒वै स पु॑रा॒णस्य॑ च॒ गाथा॑नां च नाराशं॒सीनां॑ च प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑॥
स्वर सहित पद पाठइ॒ति॒ह॒ऽआ॒सस्य॑ । च॒ । वै । स: । पु॒रा॒णस्य॑ । च॒ । गाथा॑नाम् । च॒ । ना॒रा॒शं॒सीना॑म् । च॒ । प्रि॒यम् । धाम॑ । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥६.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
इतिहासस्य चवै स पुराणस्य च गाथानां च नाराशंसीनां च प्रियं धाम भवति य एवं वेद॥
स्वर रहित पद पाठइतिहऽआसस्य । च । वै । स: । पुराणस्य । च । गाथानाम् । च । नाराशंसीनाम् । च । प्रियम् । धाम । भवति । य: । एवम् । वेद ॥६.१२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 6; मन्त्र » 12
विषय - बृहती दिशा में 'इतिहास, पुराण, गाथा और नाराशंसी'
पदार्थ -
१. (सः) = वह व्रात्य (बृहती दिशं अनुव्यचलत्) = बृहती दिशा-वृद्धि की दिशा का लक्ष्य करके चला। (तम्) = उस बृहती दिशा में चलनेवाले व्रात्य को (इतिहासः पुराणं च) = सृष्टि-उत्पत्ति आदि का नित्य इतिहास और जगदुत्पत्ति आदि का वर्णनरूप पुराण (च) = तथा (गाथा: नाराशंसी: च) = किसी का दृष्टान्त-दान्तिरूप कथा-प्रसंग कहनारूप गाथाएँ तथा मनुष्यों के प्रसंशनीय कर्मों का कहनारूप नाराशंसी (अनुव्यचलन्) = अनुकूलता से प्राप्त हुई। इनके द्वारा ही वस्तुत: वह वेद व्याख्यान को सुन्दरता से कर पाया। २. (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार इतिहास आदि के महत्त्व को समझता है, (सः) = वह व्रात्य (वै) = निश्चय से (इतिहासस्य पुराणस्य च) = इतिहास व पुराण का (च) = तथा (गाथानां नाराशंसीनां च) = गाथाओं व नाराशंसियों का (प्रियं धाम भवति) = प्रिय धाम होता है। इनके द्वारा वह वेद को खूब व्याख्यात कर पाता है।
भावार्थ -
एक व्रात्य विद्वान 'इतिहास, पुराण, गाथा व नाराशंसी' द्वारा वेद का वर्धन व्याख्यान करता हुआ 'बृहती दिक्' की ओर चलता है-वृद्धि की दिशा में आगे बढ़ता है।
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