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अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
अग॑न्म॒ स्वःस्वरगन्म॒ सं सूर्य॑स्य॒ ज्योति॑षागन्म ॥
स्वर सहित पद पाठअग॑न्म । स्व᳡: । स्व᳡: । अ॒ग॒न्म॒ । सम् । सूर्य॑स्य । ज्योति॑षा । अ॒ग॒न्म॒ ॥९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
अगन्म स्वःस्वरगन्म सं सूर्यस्य ज्योतिषागन्म ॥
स्वर रहित पद पाठअगन्म । स्व: । स्व: । अगन्म । सम् । सूर्यस्य । ज्योतिषा । अगन्म ॥९.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
विषय - सूर्यस्य ज्योतिषा
पदार्थ -
१. (स्व:) = [Water आप: रेतः] हमने वासनाओं को पराजित करके शरीर में रेत:कणों को अगन्म-प्राप्त किया है। इन सुरक्षित रेत:कणों से ज्ञानाग्नि की दीति होने पर (स्वः अगन्म) = [Radiance, lustre] हमने ज्ञानज्योति को प्राप्त किया है। २. (सूर्यस्य) = उस आदित्यवर्ण सूर्यसम ज्योति 'ब्रह्म' [ब्रह्म सूर्यसमं ज्योतिः] की (ज्योतिषा) = ज्ञानदीप्ति से (सम् अगन्म) = हम संगत हुए हैं।
भावार्थ - सन्मार्ग में चलते हुए हम रेत:कणों के रक्षण से ज्ञानप्रकाश को प्राप्त करें। प्रकाश को ही क्या उस सूर्यसम ज्योति ब्रह्म के ज्ञान से संगत हों।
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