Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 125

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 125/ मन्त्र 6
    सूक्त - सुर्कीतिः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१२५

    इन्द्रः॑ सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ अवो॑भिः सुमृडी॒को भ॑वतु वि॒श्ववे॑दाः। बाध॑तां॒ द्वेषो॒ अभ॑यं नः कृणोतु सु॒वीर्य॑स्य॒ पत॑यः स्याम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑: । सु॒ऽत्रामा॑ । स्वऽवा॑न् । अव॑:ऽभि: । सु॒ऽमृ॒डी॒क: । भ॒व॒तु॒ । वि॒श्वऽवे॑दा: ॥ बाध॑ताम् । द्वेष॑: । अभ॑यम् । न॒: । कृ॒णो॒तु॒ । सु॒ऽवीर्य॑स्य । पत॑य: । स्या॒म॒ ॥१२५.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रः सुत्रामा स्ववाँ अवोभिः सुमृडीको भवतु विश्ववेदाः। बाधतां द्वेषो अभयं नः कृणोतु सुवीर्यस्य पतयः स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र: । सुऽत्रामा । स्वऽवान् । अव:ऽभि: । सुऽमृडीक: । भवतु । विश्वऽवेदा: ॥ बाधताम् । द्वेष: । अभयम् । न: । कृणोतु । सुऽवीर्यस्य । पतय: । स्याम ॥१२५.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 125; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    १. (इन्द्रः) = सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाला प्रभु (द्वेषः बाधताम्) = द्वेष की भावना को हमसे दूर करे। (सुत्रामा) = वह उत्तम रक्षण करनेवाला (स्ववान्) = सब धनोंवाला व आत्मिक शक्तिवाला प्रभु (अवोभि:) = रक्षणों के द्वारा हमारे लिए (अभयं कृणोतु) = निर्भयता करें। प्रभु की गोद में बैठे हुए हम आत्मशक्ति-सम्पन्न बनकर निर्भय क्यों न होंगे? २. वे (विश्ववेदाः) = सम्पूर्ण धनोंवालें प्रभु (समृडीकः भवतु) = आवश्यक धनों को प्राप्त कराके हमारे लिए उत्तम सुखों को देनेवाले हों। व्यर्थ के भोगों में न फंसकर हम (सुवीर्यस्य) = उत्तम शक्ति के (पतयः) = रक्षक (स्याम) = हों।

    भावार्थ - प्रभु-कृपा से हम निर्दोष, निर्भय व सुधीर बनें।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top