Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 130

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 19
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    अथो॒ श्वा अस्थि॑रो भवन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अथो॑ । श्वा । अस्थि॑र: । भवन् ॥१३०.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अथो श्वा अस्थिरो भवन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अथो । श्वा । अस्थिर: । भवन् ॥१३०.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 19

    पदार्थ -
    १. (अथ उ) = अब यदि निश्चय से (श्वा) = [शिव गतिवृद्ध्योः ] गतमन्त्र में वर्णित गति के द्वारा प्रवृद्ध ऐश्वर्यवाला यह व्यक्ति (अस्थिर:) = न स्थिर मनोवृत्तिवाला-चंचलवृत्तिवाला-भोगप्रवण (भवन) = होता है तो (उयम्) = दुःख की बात है कि निश्चय से ही [Alas, certainly] यह भोगासक्त पुरुष (यक-अंश-लोक का) = [यकन्-जिगर, अंश-विभाजने, लोक दर्शने] जिगर को टुकड़े टुकड़े होते हुए देखनेवाला होता है।

    भावार्थ - धन के कारण भोगप्रवणता मनुष्य को अन्तत: विनाश व निराशा की ओर ले जाती है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top