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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 26

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 26/ मन्त्र 6
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२६

    के॒तुं कृ॒ण्वन्न॑के॒तवे॒ पेशो॑ मर्या अपे॒शसे॑। समु॒षद्भि॑रजायथाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    के॒तुम् । कृ॒ण्वन् । अ॒के॒तवे॑ । पेश॑: । म॒र्या॒: । अ॒पे॒शसे॑ ॥ सम् । उ॒षत्ऽभि॑: । अ॒जा॒य॒था॒: ॥२६.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    केतुम् । कृण्वन् । अकेतवे । पेश: । मर्या: । अपेशसे ॥ सम् । उषत्ऽभि: । अजायथा: ॥२६.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 26; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    १. हे (मर्या:) = मनुष्यो! प्रभु (अकेतवे) = प्रज्ञानरहित के लिए (केतं कृण्वन) = प्रज्ञान को करता हुआ है तथा (अपेशसे) = तेजस्विता की कमी से रूपरहित के लिए (पेश:) = तेजस्विता से दीस रूप को देते हैं। प्रभु प्रज्ञान व शक्ति प्राप्त कराते हैं। २. हे प्रभो। आप (उपद्धिः) = अन्धकार का दहन करनेवाली रश्मियों के साथ (सं अजायथा:) = हमारे हृदयों में प्रादुर्भूत होते हैं।

    भावार्थ - हम हृदयों में प्रभु के प्रकाश को देखने का प्रयत्न करें। प्रभु हमें ज्ञान व शक्ति प्राप्त कराते हैं। प्रज्ञान को प्राप्त करके ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्रभु का उत्तमता से प्रतिपादन करनेवाला यह उपासक 'गो-सूक्ति' बनता है। शक्ति प्राप्त करके कर्मेन्द्रियों द्वारा प्रभु का प्रतिपादन करता हुआ यह व्यक्ति 'अश्वसूक्ति' है। ये ही अगले सूक्त के ऋषि हैं -

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