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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 38

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 38/ मन्त्र 4
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-३८

    इन्द्र॒मिद्गा॒थिनो॑ बृ॒हदिन्द्र॑म॒र्केभि॑र॒र्किणः॑। इन्द्रं॒ वाणी॑रनूषत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । इत् । गा॒थिन॑: । बृ॒हत् । इन्द्र॑म् । अ॒र्केभि॑: । अ॒र्किण॑: ॥ इन्द्र॑म् । वाणी॑: । अ॒नू॒ष॒त॒ ॥३८.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रमिद्गाथिनो बृहदिन्द्रमर्केभिरर्किणः। इन्द्रं वाणीरनूषत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । इत् । गाथिन: । बृहत् । इन्द्रम् । अर्केभि: । अर्किण: ॥ इन्द्रम् । वाणी: । अनूषत ॥३८.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 38; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    १. (गाथिन:) = साम वाणियों का गायन करनेवाले (इत्) = निश्चय से (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को (बृहत्) = खूब ही (अनूषत) = स्तुत करते हैं। २. (अर्किण:) = ऋड्मन्त्रों द्वारा अर्चन करनेवाले उपासक (अभि:) = ऋचाओं के द्वारा (इन्द्रम्) = उस प्रभु का ही पूजन करते हैं। ३. (वाणी:) = यजूरूप वाणियाँ भी (इन्द्रम्) = उस प्रभु को ही स्तुत करती हैं।

    भावार्थ - हम 'ऋग-यजु-साम' मन्त्रों से प्रभु का ही पूजन करें।

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