Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 72

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 72/ मन्त्र 3
    सूक्त - परुच्छेपः देवता - इन्द्रः छन्दः - अत्यष्टिः सूक्तम् - सूक्त-७२

    उ॒तो नो॑ अ॒स्या उ॒षसो॑ जु॒षेत॒ ह्यर्कस्य॑ बोधि ह॒विषो॒ हवी॑मभिः॒ स्व॑र्षाता॒ हवी॑मभिः। यदि॑न्द्र॒ हन्त॑वे॒ मृधो॒ वृषा॑ वज्रिं॒ चिके॑तसि। आ मे॑ अ॒स्य वे॒धसो॒ नवी॑यसो॒ मन्म॑ श्रुधि॒ नवी॑यसः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒तो इति॑ । न॒: । अ॒स्या: । उ॒षस॑: । जु॒षेत॑ । हि । अ॒र्कस्य॑ । बो॒ध‍ि॒ । ह॒विष॑: । हवी॑मऽभि: । स्व॑:ऽसाता । हवी॑मऽभि: ॥ यत् । इ॒न्द्र॒ । हन्त॑वे । मृध॑: । वृषा॑ । व॒ज्रि॒न् । चिके॑तसि ॥ आ । मे॒ । अ॒स्य । वे॒धस॑: । नवी॑यस: । मन्म॑ । श्रु॒धि॒ । नवी॑यस: ॥७२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उतो नो अस्या उषसो जुषेत ह्यर्कस्य बोधि हविषो हवीमभिः स्वर्षाता हवीमभिः। यदिन्द्र हन्तवे मृधो वृषा वज्रिं चिकेतसि। आ मे अस्य वेधसो नवीयसो मन्म श्रुधि नवीयसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उतो इति । न: । अस्या: । उषस: । जुषेत । हि । अर्कस्य । बोध‍ि । हविष: । हवीमऽभि: । स्व:ऽसाता । हवीमऽभि: ॥ यत् । इन्द्र । हन्तवे । मृध: । वृषा । वज्रिन् । चिकेतसि ॥ आ । मे । अस्य । वेधस: । नवीयस: । मन्म । श्रुधि । नवीयस: ॥७२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 72; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    १. प्रभु कहते हैं कि मनुष्य (उत उ) = निश्चय से (न:) = हमारी (अस्याः उषस:) = इस उषा का (जुषेत) = प्रीतिपूर्वक सेवन करे, अर्थात् हम प्रात:काल जाग जाएँ। यह प्रात:जागरण हमें प्रभु का प्रिय बनाएगा। (हि) = निश्चय से (अर्कस्य) = स्तुतिमन्त्रों को (बोधि) = जानें। हम प्रभु-स्तवन की वृत्तिवाले बनें। (हवीमभि:) = प्रभु पुकारों के साथ (हविष:) = हवि को (बोधि) = जानें, अर्थात् हम प्रभु की प्रार्थना के साथ अग्निहोत्र करनेवाले बनें। २. हे (इन्द्र) = त्रुओं का संहार करनेवाले प्रभो! आप (हवीमभि:) = हमारी प्रार्थनाओं के साथ (स्वर्षाता) = स्वर्ग-प्रासि की साधनभूत हवियों को जानिए। हम स्तुति के साथ अग्निहोत्र अवश्य करें। (वृषा) = शक्तिशाली (वज्रिन्) = क्रियाशीलतारूप वज्रवाले प्रभो! आप (मृधः) = शत्रुओं को (हन्तवे चिकेतसि) = मारने के लिए जानते हो। आप (नवीयस:) = अतिशयेन स्तवन करनेवाले (वेधसः) = मे मेधावी मेरे मन्म-स्तोत्र को आशुधि-सर्वथा श्रवण कीजिए। (नवीयस:) = नवतर जीवनवाले मेरे स्तवन को अवश्य ही सुनिए।

    भावार्थ - हम प्रातः जागें, प्रभु-स्तवन में प्रवृत्त हों, अग्निहोत्र करें। प्रभु हमारे काम आदि शत्रुओं का संहार करेंगे। हम मेधावी व नमनशील बनकर स्तोत्रों का उच्चारण करें। इसप्रकार उत्तम जीवनवाले हम 'वसिष्ठ' होंगे। यह वसिष्ठ अगले सूक्त में प्रथम तीन मन्त्रों का ऋषि है। काम आदि शत्रुओं का संहार करके उत्तम वसुओं को प्राप्त करनेवाले [कामति गच्छति] 'वसुक्र' होंगे। ४-६ तक यही ऋषि है -

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top