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अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
तत्त्वा॑ यामि सु॒वीर्यं॒ तद्ब्रह्म॑ पू॒र्वचि॑त्तये। येना॒ यति॑भ्यो॒ भृग॑वे॒ धने॑ हि॒ते येन॒ प्रस्क॑ण्व॒मावि॑थ ॥
स्वर सहित पद पाठतत् । त्वा॒ । या॒मि॒ । सु॒ऽवीर्य॑म् । तत् । ब्रह्म॑ । पू॒र्वऽचि॑त्तये । येन॑ । यति॑ऽभ्य: । भृग॑वे । धने॑ । हि॒ते । येन॑ । प्रस्क॑ण्वम् । आवि॑थ ॥९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
तत्त्वा यामि सुवीर्यं तद्ब्रह्म पूर्वचित्तये। येना यतिभ्यो भृगवे धने हिते येन प्रस्कण्वमाविथ ॥
स्वर रहित पद पाठतत् । त्वा । यामि । सुऽवीर्यम् । तत् । ब्रह्म । पूर्वऽचित्तये । येन । यतिऽभ्य: । भृगवे । धने । हिते । येन । प्रस्कण्वम् । आविथ ॥९.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
विषय - सुवीर्यं ब्रह्म
पदार्थ -
१.हे प्रभो ! मैं (त्वा) = आपसे (तत्) = उस (सुवीर्यम्) = उत्कृष्ट पराक्रम को (यामि) = माँगता हूँ तथा (तत् ब्रह्म) = उस ज्ञान को माँगता हूँ, जो (पूर्वचित्तये) = पालन व पूरण की साधनाभूत स्मृति के लिए होता है। इस बल व ज्ञान को प्राप्त करके मैं अपने स्वरूप व मानव-जीवन के लक्ष्य को भूल न जाऊँ। २. (येन) = जिस बल व ज्ञान के द्वारा (यतिभ्यः) = संयमी पुरुषों के लिए और (भृगवे) = तपः परिपक्व पुरुषों के लिए [भ्रस्ज् पाके] (हिते धने) = हितकर धन के होने पर आप (येन) = जिस धन से (प्रस्कण्वमाविथ) = मेधावी पुरुष का रक्षण करते हैं। इस बल व ज्ञान से आप संयमी व तपस्वी लोगों को हितकर धन में स्थापित करते हैं और मेधावी पुरुष का रक्षण करते हैं।
भावार्थ - हम प्रभु से बल व ज्ञान प्राप्त करके अपने स्वरूप व लक्ष्य का स्मरण करें। संयमी व तपस्वी बनकर हितकर धन को प्राप्त हों। मेधावी बनकर प्रभु से रक्षणीय हो। धन हमारे विनाश का कारण न बन जाए।
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