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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 23

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 23/ मन्त्र 4
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - चन्द्रमाः, योनिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वीरप्रसूति सूक्त

    यानि॑ भ॒द्राणि॒ बीजा॑न्यृष॒भा ज॒नय॑न्ति च। तैस्त्वं पु॒त्रं वि॑न्दस्व॒ सा प्र॒सूर्धेनु॑का भव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यानि॑ । भ॒द्राणि॑ । बीजा॑नि । ऋ॒ष॒भा: । ज॒नय॑न्ति । च॒ । तै: । त्वम् । पु॒त्रम् । वि॒न्द॒स्व॒ । सा । प्र॒ऽसू: । धेनु॑का । भ॒व॒ ॥२३.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यानि भद्राणि बीजान्यृषभा जनयन्ति च। तैस्त्वं पुत्रं विन्दस्व सा प्रसूर्धेनुका भव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यानि । भद्राणि । बीजानि । ऋषभा: । जनयन्ति । च । तै: । त्वम् । पुत्रम् । विन्दस्व । सा । प्रऽसू: । धेनुका । भव ॥२३.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 23; मन्त्र » 4

    पदार्थ -

    १. (यानि) = जो (भद्राणि) = भन्दनीय, अमोघवीर्य (बीजानि) = बीज हैं (च) = और जिन्हें (ऋषभा:) = ऋषभक नामक ओषधियाँ (जनयन्ति) = पैदा करती हैं, (तै:) = उन बीजों से (त्वम्) = तू (पुत्रम्) = नर सन्तान को (विन्दस्व) = प्रास कर। २. (सा) = वह तू (प्रसू:) = उत्तम सन्तान को जन्म देनेवाली व (धेनुका) = उस सन्तान को दूध पिलानेवली (भव) = हो। तू स-पुत्र वृद्धि को प्राप्त हो, मृत-अपत्या न हो।

    भावार्थ -

    ऋषभक नामक ओषधि के बीजों का प्रयोग हमें अमोघ-वीर्य बनाता है। इन बीजों का प्रयोग करनेवाली माता जीवित सन्तानोंवाली होती हुई उन्हें दूध पिलानेवाली होती है।

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