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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 30

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 30/ मन्त्र 6
    सूक्त - अथर्वा देवता - चन्द्रमाः, सांमनस्यम् छन्दः - प्रस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - सांमनस्य सूक्त

    स॑मा॒नी प्र॒पा स॒ह वो॑ऽन्नभा॒गः स॑मा॒ने योक्त्रे॑ स॒ह वो॑ युनज्मि। स॒म्यञ्चो॒ऽग्निं स॑पर्यता॒रा नाभि॑मिवा॒भितः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒मा॒नी । प्र॒ऽपा । स॒ह । व॒: । अ॒न्न॒ऽभा॒ग: । स॒मा॒ने । योक्त्रे॑ । स॒ह । व॒: । यु॒न॒ज्मि॒ । स॒म्यञ्च॑: । अ॒ग्निम् । स॒प॒र्य॒त॒ । अ॒रा: । नाभि॑म्ऽइव । अ॒भित॑: ॥३०.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समानी प्रपा सह वोऽन्नभागः समाने योक्त्रे सह वो युनज्मि। सम्यञ्चोऽग्निं सपर्यतारा नाभिमिवाभितः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    समानी । प्रऽपा । सह । व: । अन्नऽभाग: । समाने । योक्त्रे । सह । व: । युनज्मि । सम्यञ्च: । अग्निम् । सपर्यत । अरा: । नाभिम्ऽइव । अभित: ॥३०.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 30; मन्त्र » 6

    पदार्थ -

    १. (प्रपा समानी) = तुम्हारा जल पीने का स्थान एक हो। (वः अन्नभागः सह) = तुम्हारा अन्न का भाग भी साथ-साथ हो, (समाने योक्त्रे) = एक ही जोते में (वः सह युनन्मि) = मैं तुम्हें साथ साथ जोड़ता हूँ। २. (सम्यञ्च:) = मिल-जुलकर (अग्गिं सपर्यंत) = उस प्रभु का पूजन करो, (नाभि अभितः अराइव) = जैसे नाभि में चारों ओर चक्र के अरे जड़े होते हैं। नाभि के चारों ओर अरों के समान हम मिलकर घर में प्रभु-पूजन व अग्निहोत्र करें।

    भावार्थ -

    घर में खान-पान सब सांझा हो। सब मिलकर घर को अच्छा बनाने में लगे हों, मिलकर प्रभु-पूजन व अग्रिहोत्र करें।

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