अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 30/ मन्त्र 6
ऋषिः - अथर्वा
देवता - चन्द्रमाः, सांमनस्यम्
छन्दः - प्रस्तारपङ्क्तिः
सूक्तम् - सांमनस्य सूक्त
272
स॑मा॒नी प्र॒पा स॒ह वो॑ऽन्नभा॒गः स॑मा॒ने योक्त्रे॑ स॒ह वो॑ युनज्मि। स॒म्यञ्चो॒ऽग्निं स॑पर्यता॒रा नाभि॑मिवा॒भितः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठस॒मा॒नी । प्र॒ऽपा । स॒ह । व॒: । अ॒न्न॒ऽभा॒ग: । स॒मा॒ने । योक्त्रे॑ । स॒ह । व॒: । यु॒न॒ज्मि॒ । स॒म्यञ्च॑: । अ॒ग्निम् । स॒प॒र्य॒त॒ । अ॒रा: । नाभि॑म्ऽइव । अ॒भित॑: ॥३०.६॥
स्वर रहित मन्त्र
समानी प्रपा सह वोऽन्नभागः समाने योक्त्रे सह वो युनज्मि। सम्यञ्चोऽग्निं सपर्यतारा नाभिमिवाभितः ॥
स्वर रहित पद पाठसमानी । प्रऽपा । सह । व: । अन्नऽभाग: । समाने । योक्त्रे । सह । व: । युनज्मि । सम्यञ्च: । अग्निम् । सपर्यत । अरा: । नाभिम्ऽइव । अभित: ॥३०.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
परस्पर मेल का उपदेश।
पदार्थ
(वः) तुम्हारी (प्रपा) जलशाला (समानी) एक हो, और (अन्नभागः) अन्न का भाग (सह) साथ-साथ हो, (समाने) एक ही [योक्त्रे] जोते में (वः) तुमको (सह) साथ-साथ (युनज्मि) मैं जोड़ता हूँ। (सम्यञ्चः) मिलकर गति [उद्योग वा ज्ञान] रखनेवाले तुम (अग्निम्) अग्नि [ईश्वर वा भौतिक अग्नि] को (सपर्यत) पूजो (इव) जैसे (अराः) अरा [पहिये के दंडे] (नाभिम्) नाभि [पहिये के बीचवाले काठ] में (अभितः) चारों ओर से [सटे होते हैं] ॥६॥
भावार्थ
जैसे अरे एक नाभि में सटकर पहिये को रथ का बोझ सुगमता से ले चलने योग्य करते हैं, ऐसे ही मनुष्य एक वेदानुकूल धार्मिक रीति पर चलकर अपना खान-पान मिलकर करें, मिलकर रहें और मिलकर ही (अग्नि) को पूजें अर्थात् १-परमेश्वर की उपासना करें, २-शारीरिक अग्नि को, जो जीवन और वीरपन का चिह्न है, स्थिर रक्खें, ३-हवन करके जलवायु शुद्ध रक्खें और ४-शिल्पव्यवहार में प्रयोग करके उपकार करें और सुख से रहें ॥६॥
टिप्पणी
६−(समानी) अ० २।१।५। साधारणा। एका। (प्रपा) प्रपीयतेऽस्याम्। पा पाने-ड, टाप्। पानीयशाला। (सह) मिलित्वा। (वः) युष्माकम्। युष्मान्। (अन्नभागः) भोजनस्य अंशः। (समाने) एकस्मिन् (योक्त्रे) दाम्नीशसयुयुज०। पा० ३।२।१८२। इति युज योगे-ष्ट्रन्। युगेन सह युज्यते आबध्यतेऽनेन तस्मिन्। योक्त्रे। बन्धने। स्नेहपाशे। (युनज्मि) युजिर् युतौ। बध्नामि। (सम्यञ्चः) म० ३। सङ्गताः। (अग्निम्) परमेश्वरं भौतिकं वा। (सपर्यत) सपर पूजायाम्। कण्ड्वादित्वाद् यक्। पूजयत। (अराः) ऋ गतौ-अच्। चक्रकीलकाः। (नाभिम्) अ० १।३। रथचक्रस्य मध्यभागम्। (अभितः) सर्वतः। अभितः परितः समया०। वा० पा० २।३।२। इति नाभिम् इति द्वितीया ॥
विषय
सब-कुछ सम्मिलित
पदार्थ
१. (प्रपा समानी) = तुम्हारा जल पीने का स्थान एक हो। (वः अन्नभागः सह) = तुम्हारा अन्न का भाग भी साथ-साथ हो, (समाने योक्त्रे) = एक ही जोते में (वः सह युनन्मि) = मैं तुम्हें साथ साथ जोड़ता हूँ। २. (सम्यञ्च:) = मिल-जुलकर (अग्गिं सपर्यंत) = उस प्रभु का पूजन करो, (नाभि अभितः अराइव) = जैसे नाभि में चारों ओर चक्र के अरे जड़े होते हैं। नाभि के चारों ओर अरों के समान हम मिलकर घर में प्रभु-पूजन व अग्निहोत्र करें।
भावार्थ
घर में खान-पान सब सांझा हो। सब मिलकर घर को अच्छा बनाने में लगे हों, मिलकर प्रभु-पूजन व अग्रिहोत्र करें।
पदार्थ
शब्दार्थ = ( वः ) = तुम्हारी ( प्रपा ) = जलशाला ( समानी ) = एक हो और ( अन्नभाग: ) = अन्न का भाग ( सह ) = साथ-साथ हो । ( समाने ) = एक ही ( योक्त्रे ) = जोते में ( वः ) = तुमको ( सह ) = साथ-साथ ( युनज्मि ) = मैं जोड़ता हूँ । ( सम्यञ्चः ) = मिल कर गतिवाले तुम ( अग्निम् ) = ज्ञानस्वरूप परमात्मा को ( सपर्यत ) = पूजो ( इव ) = जैसे ( आरा: ) = पहिये के दंड ( नाभिम् ) = नाभि में ( अभित: ) = चारों ओर से सटे होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ = सबकी पानी पीने की और भोजन करने की जगह एक हो । जब हमारा सबका एकत्र भोजन होगा तब आपस में झगड़ा नहीं होगा। जैसे कि जोते में अर्थात् एक उद्देश्य के लिए परमात्मा ने हमें मनुष्य देह दिया है तो हमको चाहिये कि परस्पर मिल कर व्यवहार, परमार्थ को सिद्ध करें । जैसे आरा रूप काष्ठों का नाभि आधार है, ऐसे ही सब जगत् का आधार परमात्मा है उसकी पूजा करें और भौतिक अग्नि में हवन करें और शिल्प विद्या से काम लें।
भाषार्थ
(समानी प्रपा) एक-पानीयशाला हो, (व:) तुम्हारा (अन्नभागः) अन्न का सेवन (सह) साथ-साथ हो। (समाने योक्त्रे) एक-जुए में (व:) तुमको (सह) साथ-साथ (युनज्मि) मैं जोतता है; (सम्यञ्च:) परस्पर संगत हुए अर्थात् मिलकर (अग्निम्) अग्निहोत्र की अग्नि की (सपर्यत) पूजा किया करो, (इव) जैसे कि (नाभिम् अभितः) रथचक्र की नाभि अर्थात् केन्द्र के चारों ओर (अराः) अरा लगे होते हैं।
टिप्पणी
[अभिप्राय यह, ग्रहवासियों का खाना-पीना एक-सा और साथ-साथ बैठकर होना चाहिए। अन्नभाग:=भज सेवायाम्। समाने युक्त्रे=सधुराः चरन्तः (मन्त्र ५)। सपर्यत=सपर पूजायाम् (कण्ड्वादि)। अरा:=जैसे रथचक्र के केन्द्र के चारों ओर अरा लगे रहते हैं, वैसे अग्निहोत्र में अग्निकुण्ड के चारों ओर बैठकर अग्निहोत्र किया करो। अरा:=spokes.]
विषय
परस्पर मिलकर एक चित्त होकर रहने का उपदेश ।
भावार्थ
हे मनुष्यो ! (समानी प्रपा) आप लोगों की एक ही पानीयशाला हो जहां से सब समान रूपसे जल पी सकें। (वः सह अन्नभागः) तुम लोगों का परस्पर प्रेम से एक साथ ही अन्न का भोजन हो इसी कारण (वः) तुम लोगों को मैं (समाने योक्त्रे) एक ही बन्धन में (युनज्मि) बांधता हूं, जोड़ता हूं। और (सम्यञ्चः) उत्तम रीति से एक फल को प्राप्त करने की अभिलाषा से एकत्र होकर ही (नाभिम् इव अभितः अराः) केन्द्र के चारों ओर अरों के समान (अग्निं) ज्ञानस्वरूप परमेश्वर और विद्वान् गुरु और यज्ञाग्नि की (सपर्यत) उपासना करो।
टिप्पणी
सामानी एका प्रपा पानीयशाला, इति सायण। परम्परानुरागवशेन एकत्रावस्थितमन्नपानादिकं युष्याभिरुपभुज्यतामित्यर्यः। इति सायणः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। चन्द्रमाः सामनस्यञ्च देवता। १-४ अनुष्टुभः। ५ विराड् जगती। ६ प्रस्तार पंक्तिः। ७ त्रिष्टुप्। सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Love and Unity
Meaning
Let your water centre be one in common, let your food be one in common and shared. I bind you all together in one common, comprehensive bond of spirit. Serve only one fire, the same one in yajna together like the spokes wheeling round one hub at the centre.
Translation
Let common be your drinking place, and common your sharing of food. I hereby yoke you together under a common yoke. With one intent let you gather around the adorable leader, like the spokes around the nave of a wheel.
Translation
Let your place of drinking water be common and let the partaking of your food be together. I the Lord Of universe Yoke you in common yoke of life’s goal, adhere to your Wise in firm Unanimity just as the spokes attached to the nave of the chariot stand firm and united.
Translation
Drink and eat together, with one common bond of love I bind you. Just as spokes are united about the chariot nave, so should you unitedly worship God.
Footnote
I refers to God.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(समानी) अ० २।१।५। साधारणा। एका। (प्रपा) प्रपीयतेऽस्याम्। पा पाने-ड, टाप्। पानीयशाला। (सह) मिलित्वा। (वः) युष्माकम्। युष्मान्। (अन्नभागः) भोजनस्य अंशः। (समाने) एकस्मिन् (योक्त्रे) दाम्नीशसयुयुज०। पा० ३।२।१८२। इति युज योगे-ष्ट्रन्। युगेन सह युज्यते आबध्यतेऽनेन तस्मिन्। योक्त्रे। बन्धने। स्नेहपाशे। (युनज्मि) युजिर् युतौ। बध्नामि। (सम्यञ्चः) म० ३। सङ्गताः। (अग्निम्) परमेश्वरं भौतिकं वा। (सपर्यत) सपर पूजायाम्। कण्ड्वादित्वाद् यक्। पूजयत। (अराः) ऋ गतौ-अच्। चक्रकीलकाः। (नाभिम्) अ० १।३। रथचक्रस्य मध्यभागम्। (अभितः) सर्वतः। अभितः परितः समया०। वा० पा० २।३।२। इति नाभिम् इति द्वितीया ॥
बंगाली (3)
পদার্থ
সমানী প্রপা সহ বৌন্নভাগঃ সমানে য়োক্ত্রে সহ বৌ য়ুনজ্মি ।
সম্যঞ্চোগ্নিং সপর্য়তারা নাভিমিবাভিতঃ ।।৯৫।।
৩।৩০।৬)
পদার্থঃ (বঃ) তোমাদের (প্রপা) জল পান (সমানী) এক হোক এবং (অন্নভাগঃ) অন্ন গ্রহণ (সহ) এক সাথে হোক। (সমানে) একই (য়োক্ত্রে) সুতায় (বঃ) তোমাদের (সহ) এক সাথে (য়ুনজ্মি) বন্ধনে যুক্ত করছি। (সম্যঞ্চঃ) তোমরা সকলে মিলে গতিশীল হয়ে (অগ্নিম্) জ্ঞানস্বরূপ পরমাত্মার (সপর্য়ত) তেমনিভাবে পূজা কর, (ইব) যেভাবে (অরাঃ) বিছানার পায়া সমূহ (নাভিম্) বিছানার নাভির (অভিতঃ) চারদিকে আটকে থাকে।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ পরমাত্মা বলছেন আমরা যেন একত্রে আহার করি । আমরা যেন ভেদাভেদ না করি । আমরা সকলেই পরমাত্মার সন্তান। তাই আমরা যেন সর্বদা এক থাকি । এভাবেই আমরা সকলে একত্রে পরমাত্মার যেন উপাসনা করি ।।৯৫।।
भाषार्थ
(সমানী প্রপা) এক-পানীয়শালা হোক, (বঃ) তোমাদের (অন্নভাগঃ) অন্নের সেবন (সহ) একসাথে হোক। (সমানে যোক্ত্রে) একই-জোয়ালে (বঃ) তোমাদের (সহ) একসাথে (যুনজ্মি) আমি যুক্ত করি; (সম্যঞ্চঃ) পরস্পর সংগত হয়ে অর্থাৎ মিলিতভাবে (অগ্নিম্) অগ্নিহোত্রের অগ্নির (সপর্যত) পূজা করো, (ইব) যেমন (নাভিম্ অভিতঃ) রথচক্রের নাভি অর্থাৎ কেন্দ্রের চারিদিকে (অরা) অরা/অর থাকে।
टिप्पणी
[অভিপ্রায় এটাই, গৃহস্থদের খাদ্য-পানীয় গ্রহণ একরকম এবং একসাথে বসে হওয়া উচিৎ। অন্নভাগঃ= ভজ সেবায়াম্। সমানে যোক্ত্রৈ=সধুরাঃ চরন্তঃ (মন্ত্র ৫)। সপর্যত=সপর পূজায়াম্ (কণ্ড্বাদিঃ)। অরাঃ=যেমন রথচক্রের কেন্দ্রের চারিদিকে অর থাকে, তেমনই অগ্নিহোত্রে অগ্নি কুণ্ডের চারিদিকে বসে অগ্নিহোত্র করো। অরাঃ=Spokes]
मन्त्र विषय
পরস্পরপ্রীত্যুদেশঃ
भाषार्थ
(বঃ) তোমাদের (প্রপা) জল-গৃহ (সমানী) এক হোক, এবং (অন্নভাগঃ) অন্নের ভাগ (সহ) একসাথে হোক, (সমানে) একই [যোক্ত্রে] স্নেহবন্ধনে (বঃ) তোমাদের (সহ) একসাথে (যুনজ্মি) আমি যুক্ত করি। (সম্যঞ্চঃ) পরস্পর সঙ্গত [উদ্যোগী বা জ্ঞানবান] তোমরা (অগ্নিম্) অগ্নি [ঈশ্বর বা ভৌতিক অগ্নি] কে (সপর্যত) পূজা করো (ইব) যেমন (অরাঃ) অর [চাকার দণ্ড] (নাভিম্) নাভি [চাকার মাঝখানের কাঠ] এ (অভিতঃ) চারিদিক থেকে/সর্বতোভাবে [সন্নিহিত থাকে] ॥৬॥
भावार्थ
যেভাবে অর এক নাভিতে সংলগ্ন/সন্নিহিত হয়ে চাকাকে রথের বোঝা সুগমতার সহিত নিয়ে যাওয়ার যোগ্য করে, এভাবেই মনুষ্য বেদানুকূল ধার্মিক রীতি অনুসারে নিজেদের খাদ্য-পানীয় গ্রহণ একসাথে করুক, একসাথে থাকুক এবং একসাথেই (অগ্নি) কে পূজা করুক অর্থাৎ ১-পরমেশ্বরের উপাসনা করুক, ২-শারীরিক অগ্নিকে, যা জীবন ও বীরত্বের চিহ্ন, স্থির রাখুক, ৩-হবন করে জলবায়ু শুদ্ধ রাখুক, এবং ৪-শিল্প ব্যবহারে প্রয়োগ করে উপকার করুক ও সুখে থাকুক॥৬॥
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