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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 12

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 12/ मन्त्र 5
    सूक्त - ऋभुः देवता - वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रोहिणी वनस्पति सूक्त

    लोम॒ लोम्ना॒ सं क॑ल्पया त्व॒चा सं क॑ल्पया॒ त्वच॑म्। असृ॑क्ते॒ अस्थि॑ रोहतु छि॒न्नं सं धे॑ह्योषधे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    लोम॑ । लोम्ना॑ । सम् । क॒ल्प॒य॒ । त्व॒चा । सम् । क॒ल्प॒य॒ । त्वच॑म् । असृ॑क् । ते॒ । अस्थि॑ । रो॒ह॒तु॒ । छि॒न्नम् । सम् । धे॒हि॒ । ओ॒ष॒धे॒ ॥१२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    लोम लोम्ना सं कल्पया त्वचा सं कल्पया त्वचम्। असृक्ते अस्थि रोहतु छिन्नं सं धेह्योषधे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    लोम । लोम्ना । सम् । कल्पय । त्वचा । सम् । कल्पय । त्वचम् । असृक् । ते । अस्थि । रोहतु । छिन्नम् । सम् । धेहि । ओषधे ॥१२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 12; मन्त्र » 5

    पदार्थ -

    १. हे (ओषधे) = ओषधे! तू शरीरस्थ (लोम) = बाल को जोकि प्रहार से विश्लिष्ट [पृथक] हो गया है (लोम्ना) = अन्य बालों से (संकल्पय) = संक्लुप्त, अर्थात् पुनः स्थानगत कर दे। उसी प्रकार (त्वचम्) = त्वचा को (त्वचा) = पृथक् हुई त्वचा से (संकल्पय) = संक्लृप्त व मिला हुआ कर दे। २. (ते) = तेरा (असृ॑क्)-रुधिर जोकि अस्थियों के समीप से पृथक् हो गया है वह फिर से (अस्थि रोहतु) = तेरी अस्थियों को प्राप्त हो जाए। इसीप्रकार और भी (छिन्नम्) = जो-जो अङ्ग छिन हुआ है, उन सबको (सन्धेहि) = संश्लिष्ट व कार्यक्षम कर दे।

    भावार्थ -

    रोहणी के प्रयोग से आघात से उत्पन्न हुए-हुए लोमों व त्वचा के विकार दूर हो जाएँ तथा सब छिन्न अङ्ग फिर से ठीक होकर कार्यक्षम हो जाएँ।

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