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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 39

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 39/ मन्त्र 1
    सूक्त - अङ्गिराः देवता - पृथिवी छन्दः - त्रिपदा महाबृहती सूक्तम् - सन्नति सूक्त

    पृ॑थि॒व्याम॒ग्नये॒ सम॑नम॒न्त्स आ॑र्ध्नोत्। यथा॑ पृथि॒व्याम॒ग्नये॑ स॒मन॑मन्ने॒वा मह्यं॑ सं॒नमः॒ सं न॑मन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पृ॒थि॒व्याम् । अ॒ग्नये॑ । सम् । अ॒न॒म॒न् । स: । आ॒र्ध्नो॒त् । यथा॑ । पृ॒थि॒व्याम् । अ॒ग्नये॑ । स॒म्ऽअन॑मन् । ए॒व । मह्य॑म् । स॒म्ऽनम॑: । सम् । न॒म॒न्तु॒ ॥३९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पृथिव्यामग्नये समनमन्त्स आर्ध्नोत्। यथा पृथिव्यामग्नये समनमन्नेवा मह्यं संनमः सं नमन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पृथिव्याम् । अग्नये । सम् । अनमन् । स: । आर्ध्नोत् । यथा । पृथिव्याम् । अग्नये । सम्ऽअनमन् । एव । मह्यम् । सम्ऽनम: । सम् । नमन्तु ॥३९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 39; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    १. (पृथिव्याम्) = इस पृथिवी में (अग्नये) = अग्नितत्त्व के लिए (समनमन्) = सब प्राणी संनत होते हैं। (सः) = वह अग्नितत्व ही (आर्ध्नोत्) = [ऋषु-10 cause, to succeed] इन प्राणियों को विजयी [सफल] बनाता है। (यथा) = जैसे (पृथिव्याम्) = इस पृथिवीरूपी शरीर में (अग्नेय) = अग्नि के लिए (समनमन्) = संनत [ro make ready] होते हैं अपने को तैयार करते हैं, (एव) = इसीप्रकार (महाम्) = मेरे लिए (संनमः) = अभिलषित फलों की प्राप्तियाँ [संनतयः] (संनमन्तु) = संनत हों-प्राप्त हों।

    भावार्थ -

    शरीररूप पृथिवी में अग्नितत्त्व ही प्रधान देवता है। इसके ठीक होने पर शरीर में सब अभिलषित [दिव्य] पदार्थ उपस्थित होते हैं। अग्नि प्रधान देव है-इसके होने पर अन्य पार्थिव देव क्यों न उपस्थित होंगे?

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