अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 38/ मन्त्र 7
सूक्त - बादरायणिः
देवता - वाजिनीवान् ऋषभः
छन्दः - त्र्यवसाना पञ्चपदानुष्टुब्गर्भा पुरउपरिष्टाज्ज्योतिष्मती जगती
सूक्तम् - वाजिनीवान् ऋषभ सूक्त
अ॒न्तरि॑क्षेण स॒ह वा॑जिनीवन्क॒र्कीं व॒त्सामि॒ह र॑क्ष वाजिन्। अ॒यं घा॒सो अ॒यं व्र॒ज इ॒ह व॒त्सां नि ब॑ध्नीमः। य॑थाना॒म व॑ ईश्महे॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒न्तरि॑क्षेण । स॒ह । वा॒जि॒नी॒ऽव॒न् । क॒र्कीम् । व॒त्साम् । इ॒ह । र॒क्ष॒ । वा॒जि॒न् । अ॒यम् । घा॒स: । अ॒यम् । व्र॒ज: । इ॒ह । व॒त्साम् । नि । ब॒ध्नी॒म॒: । य॒था॒ऽना॒म् । व॒: । ई॒श्म॒हे॒ । स्वाहा॑ ॥३८.७॥
स्वर रहित मन्त्र
अन्तरिक्षेण सह वाजिनीवन्कर्कीं वत्सामिह रक्ष वाजिन्। अयं घासो अयं व्रज इह वत्सां नि बध्नीमः। यथानाम व ईश्महे स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठअन्तरिक्षेण । सह । वाजिनीऽवन् । कर्कीम् । वत्साम् । इह । रक्ष । वाजिन् । अयम् । घास: । अयम् । व्रज: । इह । वत्साम् । नि । बध्नीम: । यथाऽनाम् । व: । ईश्महे । स्वाहा ॥३८.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 38; मन्त्र » 7
विषय - उत्तम घर
पदार्थ -
१. हे (वाजिनीवन्) = प्रशस्त उषाकालवाले! उषाकाल में प्रबुद्ध होनेवाले (वाजिन) = शक्तिशाली गृहपते! (अन्तरिक्षेण सह) = अन्तरिक्ष के साथ, अर्थात् सदा मध्यमार्ग में चलने के साथ (इह) = इस जीवन में (ककाम्) = क्रियाशील (वत्साम्) = प्रभु-स्तोत्रों का उच्चारण करनेवाली प्रिय पत्नी की रक्ष-तू रक्षा करनेवाला हो। २. पति उत्तर देता हुआ कहता है कि (अयं घास:) = यह वानस्पतिक भोजन यहाँ घर में है। (अयं वज:) = यह क्रियाशील जीवन है [व्रज गतौ]। इह यहाँ (वत्साम्) = तुझ प्रभु भक्तिवाली प्रिय पत्नी को हम (निबध्नीम:) = बाँधते हैं। वस्तुतः पति का मुख्य कर्तव्य यही हो कि वह घर में पोषण के लिए आवश्यक पदार्थों की कमी न होने दे और आलसी जीवनवाला न हो। ये दो बातें ही पत्नी को घर में बाँधनेवाली होती हैं। पति विवाह-संस्कार के समय कहता है कि-('धूवैधि पोष्ये मयि')। ३. ये पति-पत्नी अपनी सन्तानों के साथ मिलकर प्रात:-सायं प्रभु का उपासन करते हैं और कहते हैं कि हे प्रभो! (वः यथानाम) = आपके नाम के अनुसार, अर्थात् जितना-जितना आपका नाम लेते हैं, उतना-उतना ही हम (ईश्महे) = ऐश्वर्यवाले होते हैं, अत: स्वाहा-हम आपके प्रति ही अपना [स्व] अर्पण करते हैं [हा]-आपकी शरण में आते
भावार्थ -
पति प्रात: प्रबुद्ध होनेवाला हो, शक्तिशाली हो, घर में खान-पान की कमी न होने दे-क्रियाशील हो। घर में पति-पत्नी अपनी सन्तानों के साथ प्रभु का उपासन करनेवाले बनें।
विशेष -
अपने जीवन को सुन्दर बनानेवाले पति-पत्नी 'अंगिरस्' बनते हैं। अगले सूक्त का ऋषि 'अंगिरा:' ही है-