अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 38/ मन्त्र 1
सूक्त - बादरायणिः
देवता - अप्सराः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - वाजिनीवान् ऋषभ सूक्त
उ॑द्भिन्द॒तीं सं॒जय॑न्तीमप्स॒रां सा॑धुदे॒विनी॑म्। ग्लहे॑ कृ॒तानि॑ कृण्वा॒नाम॑प्स॒रां तामि॒ह हु॑वे ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त्ऽभि॒न्द॒तीम् । स॒म्ऽजय॑न्तीम् । अ॒प्स॒राम् । सा॒धु॒ऽदे॒विनी॑म् । ग्लहे॑ । कृ॒तानि॑ । कृ॒ण्वा॒नाम् । अ॒प्स॒राम् । ताम् । इ॒ह । हु॒वे॒ ॥३८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
उद्भिन्दतीं संजयन्तीमप्सरां साधुदेविनीम्। ग्लहे कृतानि कृण्वानामप्सरां तामिह हुवे ॥
स्वर रहित पद पाठउत्ऽभिन्दतीम् । सम्ऽजयन्तीम् । अप्सराम् । साधुऽदेविनीम् । ग्लहे । कृतानि । कृण्वानाम् । अप्सराम् । ताम् । इह । हुवे ॥३८.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 38; मन्त्र » 1
विषय - अप्सरा का आवाहन
पदार्थ -
१. मैं (इह) = इस घर में (ताम्) = उस (अप्सराम्) = [अप्-कर्म, सृ गतौ] क्रियाशील, आलस्यरहित गृहिणी को (हुवे) = पुकारता हूँ-प्रभु से ऐसी गृहिणी के लिए प्रार्थना करता हूँ जो (उद्भिन्दतीम्) = वासनारूप शत्रुओं को उखाड़ देनेवाली है-जिसका जीवन वासनामय नहीं है, (सञ्जयन्तीम्) = जो वासनारूप शत्रुओं पर सदा विजय पाती है, (साधुदेविनीम्) = जो उत्तम व्यवहारवाली है-घर के सब कार्यों को कुशलता से करती है। २. मैं उस गृहिणी को चाहता हूँ जो (ग्लहे) = स्पर्धा के समय (कृतानि कृण्वानाम्) = उत्तम कृत्यों को करनेवाली है और (अप्सराम्) = खूब ही क्रियाशील है। जुए में जैसे स्पर्धा से अधिक और अधिक शर्त लगाते हैं, उसी प्रकार यह गृहिणी 'घर को उत्तम बनाने में' औरों को जीतने की कामनावाली होती है।
भावार्थ -
पत्नी के मुख्य गुण है-[क] वासनाओं का विदारण-इनपर विजय पाना, [ख] क्रियाशील होना, [ग] उत्तम व्यवहारवाली होना-क्रियाओं को कुशलता से करना, [घ] घर को उत्तम बनाने की स्पर्धावाला होना।
इस भाष्य को एडिट करें