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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 38

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 38/ मन्त्र 3
    सूक्त - बादरायणिः देवता - अप्सराः छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा जगती सूक्तम् - वाजिनीवान् ऋषभ सूक्त

    यायैः॑ परि॒नृत्य॑त्या॒ददा॑ना कृ॒तं ग्लहा॑त्। सा नः॑ कृ॒तानि॑ सीष॒ती प्र॒हामा॑प्नोतु मा॒यया॑। सा नः॒ पय॑स्व॒त्यैतु॒ मा नो॑ जैषुरि॒दं धन॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या । अयै॑: । प॒रि॒ऽनृत्य॑ति । आ॒ऽददा॑ना । कृ॒तम् । ग्लहा॑त् । सा । न॒: । कृ॒तानि॑ । सी॒ष॒ती । प्र॒ऽहाम् । आ॒प्नो॒तु॒ । मा॒यया॑ । सा । न॒: । पय॑स्वती । आ । ए॒तु॒ । मा । न॒: । जै॒षु॒ । इ॒दम् । धन॑म् ॥३८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यायैः परिनृत्यत्याददाना कृतं ग्लहात्। सा नः कृतानि सीषती प्रहामाप्नोतु मायया। सा नः पयस्वत्यैतु मा नो जैषुरिदं धनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या । अयै: । परिऽनृत्यति । आऽददाना । कृतम् । ग्लहात् । सा । न: । कृतानि । सीषती । प्रऽहाम् । आप्नोतु । मायया । सा । न: । पयस्वती । आ । एतु । मा । न: । जैषु । इदम् । धनम् ॥३८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 38; मन्त्र » 3

    पदार्थ -

    १. हमारे घर में उस गृहिणी का प्रवेश हो (या) = जो (अयैः) = शुभावह विधियों से-पुण्यमार्गों से (परिनत्यति) = कार्यों में नृत्य करती है-कार्यों को स्फूर्ति से करती है। वह पत्नी (ग्लहात्) = घर को उत्तम बनाने की स्पर्धा से (कृतम् आददाना) = उत्तम कर्मों का आदान करती है। २. (सा) = यह गृहिणी (न:) = हमारे (कृतानि) = कर्तव्यकर्मों को (सीषती) = नियमबद्ध करती हुई [ओहाङ् गतौ] अथवा प्रकृष्ट त्याग-सब अशुभों के दूरीकरण को [ओहाक् त्यागे] (आप्नोतु) = प्राप्त करे। ३ (सा) = वह पत्नी (पयस्वती) = दूध आदि उत्तम पदार्थोंवाली (न:) = हमें (आ एतु) = सर्वथा प्राप्त हो। गृहिणी इस बात का ध्यान करे कि दूसरे लोग (नः इदं धनम्) = हमारे इस उत्तम गृहरूप धन को (मा जैष:) = जीतनेवाले न हों। हमारा घर उत्तमता में पिछड़ न जाए।

    भावार्थ -

    १. पत्नी शुभ-कर्मों को सदा स्फूर्ति से करनेवाली हो, २. गृह को उत्तम बनाने की स्पर्धा से शुभकों का स्वीकार करे, ३. समझदारी से घर को आगे और आगे ले-चले, ४. घर में दूध आदि पदार्थों की कभी न होने दे, ५. गृह-धन को अपव्ययित न होने दे।

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