Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 2

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 2/ मन्त्र 7
    सूक्त - बृहद्दिवोऽथर्वा देवता - वरुणः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - भुवनज्येष्ठ सूक्त

    स्तु॒ष्व व॑र्ष्मन्पुरु॒वर्त्मा॑नं॒ समृभ्वा॑णमि॒नत॑ममा॒प्तमा॒प्त्याना॑म्। आ द॑र्शति॒ शव॑सा॒ भूर्यो॑जाः॒ प्र स॑क्षति प्रति॒मानं॑ पृथि॒व्याः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्तु॒ष्व । व॒र्ष्म॒न् । पु॒रु॒ऽवर्त्मा॑नम् । सम् । ऋभ्वा॑णम् । इ॒नऽत॑मम् । आ॒प्तम् । आ॒प्त्याना॑म् ।आ । द॒र्श॒ति॒ । शव॑सा । भूरि॑ऽओजा: । प्र । स॒क्ष॒ति॒ । प्र॒ति॒ऽमान॑म् । पृ॒थि॒व्या: ॥२.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्तुष्व वर्ष्मन्पुरुवर्त्मानं समृभ्वाणमिनतममाप्तमाप्त्यानाम्। आ दर्शति शवसा भूर्योजाः प्र सक्षति प्रतिमानं पृथिव्याः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्तुष्व । वर्ष्मन् । पुरुऽवर्त्मानम् । सम् । ऋभ्वाणम् । इनऽतमम् । आप्तम् । आप्त्यानाम् ।आ । दर्शति । शवसा । भूरिऽओजा: । प्र । सक्षति । प्रतिऽमानम् । पृथिव्या: ॥२.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 7

    पदार्थ -

    १. हे जीव! तू (वर्ष्मन्) = [शरीरं वर्मविग्रहः] इस मानव-शरीर में उस प्रभु का (स्तुष्व) = स्तवन कर जो प्रभु (पुरुवर्त्मानिम्) = पालक व पूरक मार्गवाले हैं। प्रभु-प्राप्ति का मार्ग हमें नीरोगता व निर्मलता की ओर ले-चलता है। वे प्रभु (समृभ्वाणम्) = ज्ञान से सम्यग् दीप्त हैं, (इनतमम्) = सर्वमहान् स्वामी हैं, (आप्त्यानाम् आप्तम्) = विश्वसनीयों में विश्वसनीय हैं। प्रभु-भक्त को किसी प्रकार का संशय नहीं रहता। प्रभु उपासकों का रक्षण करते ही हैं। वे (भूर्योजा:) = अनन्त बलवाले प्रभु (शवसा) = बल के द्वारा (आदर्शति) = समन्तात् दृष्टिगोचर होते हैं-सर्वत्र प्रभु की शक्ति कार्य करती हुई प्रतीत होती है। वे प्रभु (पृथिव्याः) = पृथिवी के (प्रतिमानम्) = प्रतिमान को-समानता को (प्रसक्षति) = धारण करते हैं, अर्थात् इस पृथिवी की भाँति सबके आधार होते हुए सबका पालन व पोषण करते हैं।

    भावार्थ -

    प्रभु का मार्ग पालन व पूरण करनेवाला है। प्रभु ज्ञानदीप्त हैं, सर्वेश्वर हैं, विश्वसनीयतम आधार हैं। सर्वत्र प्रभु की शक्ति कार्य करती हुई दृष्टिगोचर होती है। प्रभु पृथिवी की भाँति सर्वाधार हैं।।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top