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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 60

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 60/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - अर्यमा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पतिलाभ सूक्त

    धा॒ता दा॑धार पृथि॒वीं धा॒ता द्यामु॒त सूर्य॑म्। धा॒तास्या अ॒ग्रुवै॒ पतिं॒ दधा॑तु प्रतिका॒म्यम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धा॒ता । दा॒धा॒र॒ । पृ॒थि॒वीम् । धा॒ता । द्याम् । उ॒त । सूर्य॑म् । धा॒ता । अ॒स्यै । अ॒ग्रुवै॑ । पति॑म् । पति॑म् । दधा॑तु । प्र॒ति॒ऽका॒म्य᳡म् ॥६०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धाता दाधार पृथिवीं धाता द्यामुत सूर्यम्। धातास्या अग्रुवै पतिं दधातु प्रतिकाम्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    धाता । दाधार । पृथिवीम् । धाता । द्याम् । उत । सूर्यम् । धाता । अस्यै । अग्रुवै । पतिम् । पतिम् । दधातु । प्रतिऽकाम्यम् ॥६०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 60; मन्त्र » 3

    पदार्थ -

    १. कन्या-पिता प्रभु से प्रार्थना करता है कि (धाता) = सर्वाधार प्रभो! आप (पृथिवीं दाधार) = पृथिवी का धारण करते हैं, (धाता) = सर्वाधार आप ही (द्याम्) = घुलोक का (उत) = और (सूर्यम्) = सूर्य का धारण करते हैं। (धाता) = धाता आप ही (अस्यै अमुवै) = इस पतिकामा कन्या के लिए (प्रतिकाम्यम्) = आभिमुख्येन कामयितव्य (पतिं दधातु) = पति प्रास कराएँ।

    भावार्थ -

    कन्या का पिता प्रभु से प्रार्थना करता है कि हे प्रभो! आप ही सबके आधार हो। इस कन्या को भी आपने ही आधार देना है। इसके लिए आप ही योग्य वर प्राप्त कराएँगे।

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