अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 81/ मन्त्र 3
सूक्त - अथर्वा
देवता - सावित्री, सूर्यः, चन्द्रमाः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सूर्य-चन्द्र सूक्त
सोम॑स्यांशो युधां प॒तेऽनू॑नो॒ नाम॒ वा अ॑सि। अनू॑नं दर्श मा कृधि प्र॒जया॑ च॒ धने॑न च ॥
स्वर सहित पद पाठसोम॑स्य । अं॒शो॒ इति॑ । यु॒धा॒म् । प॒ते॒ । अनू॑न: । नाम॑ । वै । अ॒सि॒ । अनू॑नम् । द॒र्श॒ । मा॒ । कृ॒धि॒ । प्र॒ऽजया॑ । च॒ । धने॑न । च॒ ॥८६.३॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमस्यांशो युधां पतेऽनूनो नाम वा असि। अनूनं दर्श मा कृधि प्रजया च धनेन च ॥
स्वर रहित पद पाठसोमस्य । अंशो इति । युधाम् । पते । अनून: । नाम । वै । असि । अनूनम् । दर्श । मा । कृधि । प्रऽजया । च । धनेन । च ॥८६.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 81; मन्त्र » 3
विषय - [सोम का अंशु] अनून:
पदार्थ -
१. हे (सोमस्य अंशो) = सोम के अंश-चन्द्र के प्रकाश, चन्द्रमा को भी प्रकाशित करनेवाले प्रभो! (युधां पते) = युद्धों के स्वामिन, युद्धों में उपासकों को विजय प्राप्त करानेवाले! (अनूनः नाम वा असि) = आप निश्चय से 'अनून' हैं। आपमें किसी प्रकार से भी कोई कमी नहीं है। हे दर्श-दर्शनीय अथवा सर्वद्रष्टः प्रभो! आप (मा) = मुझे भी (अनूनं कृधि) = अन्यून बनाइए। प्(रजया च धनेन च) = प्रजा के दृष्टिकोण से तथा धन के दृष्टिकोण से मैं अनून बन पाऊँ-उत्तम प्रजावाला बनूं तथा उत्तम ऐश्वर्यवाला होऊँ।
भावार्थ -
प्रभु चन्द्र आदि को भी प्रकाशित करनेवाले हैं, 'ज्योतिषां ज्योतिः' है। हमें युद्धों में विजय प्राप्त करानेवाले हैं। सर्वद्रष्टा, न्यूनता से रहित प्रभु की कृपा से मैं भी अनून बनूं उत्तम प्रजा व धनवाला हो।
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