Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 82

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 82/ मन्त्र 5
    सूक्त - शौनकः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अग्नि सूक्त

    प्रत्य॒ग्निरु॒षसा॒मग्र॑मख्य॒त्प्रति॒ अहा॑नि प्रथ॒मो जा॒तवे॑दाः। प्रति॒ सूर्य॑स्य पुरु॒धा च॑ र॒श्मीन्प्रति॒ द्यावा॑पृथि॒वी आ त॑तान ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रति॑ । अ॒ग्नि: । उ॒षसा॑म् । अग्र॑म् । अ॒ख्य॒त् । प्रति॑ । अहा॑नि । प्र॒थ॒म: । जा॒तऽवे॑दा: । प्रति॑ । सूर्य॑स्य । पु॒रु॒ऽधा । च॒ । र॒श्मीन् । प्रति॑ । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । आ । त॒ता॒न॒ ॥८७.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रत्यग्निरुषसामग्रमख्यत्प्रति अहानि प्रथमो जातवेदाः। प्रति सूर्यस्य पुरुधा च रश्मीन्प्रति द्यावापृथिवी आ ततान ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रति । अग्नि: । उषसाम् । अग्रम् । अख्यत् । प्रति । अहानि । प्रथम: । जातऽवेदा: । प्रति । सूर्यस्य । पुरुऽधा । च । रश्मीन् । प्रति । द्यावापृथिवी इति । आ । ततान ॥८७.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 82; मन्त्र » 5

    पदार्थ -

    १. (अग्नि:) = वे अग्रणी प्रभु (उषसाम् अग्रं प्रति अख्यत्) = उपाओं के अग्नभाग को प्रतिदिन प्रकाशित करते हैं। वे प्रभु ही (प्रथमः) = सबके आदिमूल व (जातवेदा:) = सर्वज्ञ है, (अहानि प्रति) [अख्यत्] = सब दिनों को प्रकाशित करते हैं। २. (सूर्यस्य रश्मीन्) = सूर्य की रश्मियों को (च) = भी पुरुधा-नाना प्रकार से [विविध वर्णयुक्त करके] प्रति[अख्यत्]-प्रकाशित करते हैं। (द्यावापृथिवी प्रति आततान) =  द्यावापृथिवी के प्रत्येक पदार्थ में आतत [व्यापक] हो रहे हैं-प्रत्येक पदार्थ में अपने प्रकाश को विस्तृत कर रहे हैं।

    भावार्थ -

    वे प्रभु 'उषाओं को, दिनों को, सूर्यरश्मियों को व द्यावापृथिवी के प्रत्येक पदार्थ को' प्रकाशित कर रहे हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top