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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 6

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 6/ मन्त्र 1
    सूक्त - गरुत्मान् देवता - तक्षकः, ब्राह्मणः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विषघ्न सूक्त

    ब्रा॑ह्म॒णो ज॑ज्ञे प्रथ॒मो दश॑शीर्षो॒ दशा॑स्यः। स सोमं॑ प्रथ॒मः प॑पौ॒ स च॑कारार॒सं वि॒षम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्रा॒ह्म॒ण: । ज॒ज्ञे॒ । प्र॒थ॒म: । दश॑ऽशीर्ष: । दश॑ऽआस्य: । स: । सोम॑म् । प्र॒थ॒म: । प॒पौ॒ । स: । च॒का॒र॒ । अ॒र॒सम् । वि॒षम् ॥६.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्राह्मणो जज्ञे प्रथमो दशशीर्षो दशास्यः। स सोमं प्रथमः पपौ स चकारारसं विषम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्राह्मण: । जज्ञे । प्रथम: । दशऽशीर्ष: । दशऽआस्य: । स: । सोमम् । प्रथम: । पपौ । स: । चकार । अरसम् । विषम् ॥६.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 6; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    विषचिकित्सा का उपदेश करते हैं। (ब्राह्मणः) ‘ब्राह्मण’ नामक ओषधि (प्रथमः) सब ओषधियों में सब से श्रेष्ठ (जज्ञे) प्रकट हुआ जो (दश-शीर्षः) दश प्रकार के रोगों का नाशक, (दशआस्यः) दश अंगों की पीड़ा को बाहर फेंक देने वाला है, क्योंकि (सः) वह (प्रथमः) सब से श्रेष्ठ होने के कारण (सोमं) सोम रस, अमृत की रक्षा करता है (समः) वह (विषं) विष को भी (अरसं) अरस, वीर्यरहित (चकार) कर देता है। ब्राह्मण कन्द ‘गृष्टि’ नामक ओषधि है जिसका गुण ‘विषपित्त- कफापहा’ लिखा है। इसके ही विश्वक्सेना, वाराही, कौमारी, ब्रह्मपत्री, त्रिनेत्रा, अमृत आदि नाम हैं। इसके गुण हैं- वाराही तिक्तकटुका विषपित्तकफापहा। कुष्ठमेहकृमिहरा वृष्या बल्या रसायनी॥ राजनिघण्टु । इसके अतिरिक्त सोम नाम से कही जाने वाली सोमवल्ली, वाकुची, ब्राह्मी, गुडूची, रीठाकरन्ज, सौम्या, शठी, भार्गी आदि ओषधियां भी नाना प्रकार के विषनाशक हैं जिनमें रीठाकरन्ज और वाकुची विशेष रूप से त्वग्दोष, विष, कण्डू और खर्जू का नाशक हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गरुत्मान् ऋषिः। तक्षको देवता। १-८ अनुष्टुभः। अष्टर्चं सूक्तम्।

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