अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 6/ मन्त्र 1
ऋषि: - गरुत्मान्
देवता - तक्षकः, ब्राह्मणः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - विषघ्न सूक्त
25
ब्रा॑ह्म॒णो ज॑ज्ञे प्रथ॒मो दश॑शीर्षो॒ दशा॑स्यः। स सोमं॑ प्रथ॒मः प॑पौ॒ स च॑कारार॒सं वि॒षम् ॥
स्वर सहित पद पाठब्रा॒ह्म॒ण: । ज॒ज्ञे॒ । प्र॒थ॒म: । दश॑ऽशीर्ष: । दश॑ऽआस्य: । स: । सोम॑म् । प्र॒थ॒म: । प॒पौ॒ । स: । च॒का॒र॒ । अ॒र॒सम् । वि॒षम् ॥६.१॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्राह्मणो जज्ञे प्रथमो दशशीर्षो दशास्यः। स सोमं प्रथमः पपौ स चकारारसं विषम् ॥
स्वर रहित पद पाठब्राह्मण: । जज्ञे । प्रथम: । दशऽशीर्ष: । दशऽआस्य: । स: । सोमम् । प्रथम: । पपौ । स: । चकार । अरसम् । विषम् ॥६.१॥
विषय - विष दूर करने के लिये उपदेश।
पदार्थ -
(प्रथमः) सब वर्णों में प्रधान, (दशशीर्षः) दस प्रकार के [१-दान, २-शील, ३-क्षमा, ४-वीर्य, ५-ध्यान, ६-बुद्धि, ७-सेना, ८-उपाय, ९-गुप्त दूत, और १०-ज्ञान] बलों में शिर रखनेवाला, और (दशास्यः) दस दिशाओं में मुख के समान पोषण शक्तिवाला वा दस दिशाओं में स्थितिवाला (ब्राह्मणः) ब्राह्मण अर्थात् वेदवेत्ता पुरुष (जज्ञे) उत्पन्न हुआ। (सः प्रथमः) उस प्रधान पुरुष ने (सोमम्) सोम नाम ओषधि का रस (पपौ) पिया, और (सः) उसने (विषम्) विष को (अरसम्) निर्गुण कर दिया ॥१॥
भावार्थ - जैसे वेदवेत्ता सद्वैद्यों ने पूर्ण विद्या प्राप्त करके सब दिशाओं में खोजकर संसार के उपकार के लिये सोम रस को पाया और आरोग्यनाशक और शरीरविकारक विष को हटाया है, हम लोग इसी प्रकार सोमलता आदि औषधों की प्राप्ति और परीक्षा करके संसार का कष्ट मिटाकर सबको सुख पहुँचावें और ब्राह्मण अर्थात् वेदवेत्ता होकर अगुआ बनें ॥१॥ सोम का विशेष वर्णन ऋग्वेद मण्डल ९, और सामवेद उत्तरार्चिक प्रपाठक १ आदि में है, यहाँ दो मन्त्र लिखते हैं। स्वादि॑ष्ठया॒ मदि॑ष्ठया पव॑स्व सोम॒ धार॑या। इन्द्रा॑य॒ पात॑वे सु॒तः ॥१॥ र॒क्षो॒हा वि॒श्वचर्षणिर॒भि योनि॒मयो॑हतम्। द्रुणा॑ स॒धस्थ॒मास॑दत् ॥२॥ ऋग्वेद ९।१।१, २॥यजु० २६।२५, २६॥ साम उत्तरा० प्र० १ अ० १ त्रिक १५ ॥ (सोम) हे सोम रस (स्वादिष्ठया) बड़ी स्वादिष्ठ और (मदिष्ठया) अति आनन्दकारक (धारया) धारा से (इन्द्राय) बड़े प्रतापी इन्द्र, पुरुष के लिये (पातवे) पीने को (सुतः) छनकर (पवस्व) शुद्ध हो ॥१॥ (रक्षोहा) रोगादि दुष्ट राक्षसों के नाश करनेवाले, (विश्वचर्षणिः) सब मनुष्यों के हितकारक उस [सोम] ने (अपोहतम्) सुवर्ण से बने हुए (सधस्थम्) एक साथ ठहरने योग्य (योनिम्) स्थान (द्रुणा=द्रोणे) द्रोण कलश में (अभि) व्याप-कर (आ असदत्) पाया है ॥२॥ सोम का वृत्तान्त सुश्रुतचरक आदि वैद्यक ग्रन्थों में सविस्तार है, वहाँ देख लेवें ॥
टिप्पणी -
१−(ब्राह्मणः) तदधीते तद्वेद। पा० ४।२।५९। इति ब्रह्मन्-अण्। ब्राह्मोऽजातौ। पा० ६।४।१७१। इति न टिलोपः। वेदपाठी। वेदवेत्ता पुरुषः (जज्ञे) जनी-लिट्। प्रादुर्बभूव (प्रथमः) सर्ववर्णेषु प्रधानः। अग्रिमः (दशशीर्षः) श्रयतेः स्वाङ्गे शिरः किच्च। उ० ४।१९४। श्रिञ् सेवायाम्-असुन्, शिरादेशः। शिरःशब्दस्य शीर्षं वा। उत्तमाङ्गं शिरः शीर्षं मूर्धा ना-मस्तकोऽस्त्रियाम्, इत्यमरः, १६।९५। दानशीलक्षमावीर्य्यध्यानप्रज्ञा बलानि च। उपायः प्रणिधिर्ज्ञानं दश बुद्धबलानि च। इति शब्दकल्पद्रुमवचनाद् दशसु बलेषु शीर्षं शिरोबलं यस्य स तथाभूतः पुरुषः (दशास्यः) ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। इति असु क्षेपणे-ण्यत्। अस्यतेऽन्नमस्मिन्निति आस्यं मुखम्। यद्वा। आस उपवेशने-ण्यत्, टाप् आस्या स्थितिः, आसनम्। दशसु दिक्षु आस्यं मुखवत् पोषणं यस्य। यद्वा। दशसु दिक्षु आस्या स्थितिर्यस्य स तथाभूतः (सः) ब्राह्मणः (सोमम्) अ० १।६।२। सोमलतारसम्। ओषधिः सोमः सुनोतेर्यदेनमभिषुण्वन्ति। बहुलमस्य नैघण्टुकं वृत्तमाश्चर्य्यमिव प्राधान्येन तस्य पावमानीषु-निरु० ११।२। (प्रथमः) प्रधानः। (पपौ) पीतवान् (चकार) कृतवान् (अरसम्) रसरहितं निर्वीर्यम् (विषम्) विष विप्रयोगे, यद्वा, विष्लृ व्याप्तौ-क। विषमित्युदकनाम विष्णातेर्विपूर्वस्य स्नातेः शुद्ध्यर्थस्य विपूर्वस्य वा सचतेः निरु० २२।२६। आरोग्यस्य शरीरस्य वानशिकं द्रव्यम् ॥
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Subject - Antidote to Poison
Meaning -
The one first and foremost among anti-poison herbs is known as Brahmana (also known as Grshti) which is ten times more effective and ten times more preventive than others against poison. It absorbs the soma energy of living vitality from earth and renders the poison ineffective throwing it out of ten parts of the body.
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