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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 5
    ऋषिः - गरुत्मान् देवता - विषम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विषघ्न सूक्त
    66

    श॒ल्याद्वि॒षं निर॑वोचं॒ प्राञ्ज॑नादु॒त प॑र्ण॒धेः। अ॑पा॒ष्ठाच्छृङ्गा॒त्कुल्म॑ला॒न्निर॑वोचम॒हं वि॒षम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒ल्यात् । वि॒षम् । नि: । अ॒वो॒च॒म् । प्र॒ऽअञ्ज॑नात् । उ॒त । प॒र्ण॒ऽधे: । अ॒पा॒ष्ठात् । शृङ्गा॑त् । कुल्म॑लात् । नि: । अ॒वो॒च॒म् । अ॒हम् । वि॒षम् ॥६.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शल्याद्विषं निरवोचं प्राञ्जनादुत पर्णधेः। अपाष्ठाच्छृङ्गात्कुल्मलान्निरवोचमहं विषम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शल्यात् । विषम् । नि: । अवोचम् । प्रऽअञ्जनात् । उत । पर्णऽधे: । अपाष्ठात् । शृङ्गात् । कुल्मलात् । नि: । अवोचम् । अहम् । विषम् ॥६.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 6; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विष दूर करने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (शल्यात्) बाण की अणि से, (प्राञ्जनात्) लेप से (उत) और (पर्णधेः) पंखवाले तीर के भाग से (विषम्) विष को (निः) निकालकर (अवोचम्) मैंने वचन बोला है। (शृङ्गात्) तीक्ष्ण (अपाष्ठात्) बाण के फल से और (कुल्मलात्) बाण छिद्र से (विषम्) विष को (निः=निर्गमय्य) निकालकर (अहम्) मैंने (अवोचम्) वचन कहा है ॥५॥

    भावार्थ

    विषैले बाण के जिस जिस खण्ड से जहाँ-जहाँ शरीर में घाव हों, बुद्धिमान् वैद्य वहाँ-वहाँ से सावधानी के साथ विष निकालकर घायल पुरुष को स्वस्थ करे ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(शल्यात्। विषम्) निः। (अवोचम्) मतम्-म० ४। (प्राञ्जनात्) अञ्जु व्यक्तिगतिम्रक्षणेषु-ल्युट्। प्रलेपात् (उत) अपि (पर्णधेः) पत्रयुक्तशरकाण्डात् (अपाष्ठात्) अप+आङ्+ष्ठा-क। अपस्थिताद् बाणफलात् (शृङ्गात्) अ० २।३२।६। शॄ हिंसायाम्-गन्, नुट् च। शृणातीति शृङ्गं तीक्ष्णम्। तीक्ष्णात् (कुल्मलात्) अ० २।३०।३। बाणदण्डच्छिद्रात्। गतमन्यत् ॥

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    विषय

    विष को मन्त्रयुक्त औषध से दूर करना

    पदार्थ

    १. (शल्यात्) = बाण के अयोमय अग्रभाग से होनेवाले (विषम्) = विष को (निरवोचम्) = मैंने मन्त्रयुक्त [विचारपूर्वक प्रयुक्त] औषध से निकाल दिया है, इसी प्रकार (प्राञ्जनात्) = किसी वस्तु के प्रलेप से होनेवाले विष को मैंने दूर किया है। २. (अपाष्ठात्) = बाण की नोक से-किसी नुकीले कील आदि से होनेवाले विष को मैंने दूर किया है। इसीप्रकार (शृंगात्) = किसी पशु के सींग से होनेवाले विष को तथा (कुल्मलात्) = कुत्सित प्राणिमल से उद्भूत विष को मैं मन्त्रयुक्त औषध से दूर करता हूँ।

    भावार्थ

    विविध कारणों से उत्पन्न होनेवाले विष को एक सवैद्य मन्त्रयुक्त औषध से दूर करे।

     

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    भाषार्थ

    (शल्यात्) बाण के लोहमय मुखाग्र से, (प्राञ्जनात्) बाण में विष के प्रलेप से, (उत) तथा (पर्णधेः) पुंखधारी बाण-दण्ड से (विषम्) विष को (निर् अवोचम्) निकाल देना मैंने कह दिया है। (अपाष्ठात्) आस्था-रहित अर्थात् टूटे-फूटे (शृङ्गात्) वाणाग्र में लगे सींग से, (कुल्मलात्) या किसी पाप से उत्पन्न (विषम्) विष को (निर् अवोचम्, अहम्) निकाल देना मैंने कह दिया है।

    टिप्पणी

    [कुल्मलम् पापम् (उणा० ४.१८९, दयानन्द)। अथवा कुलस्य परिवारस्य मलम् अस्वच्छता, मलिनता।]

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    विषय

    विष चिकित्सा।

    भावार्थ

    विष के दूर करने के उपाय दर्शाते हैं—(शल्याद्) शल्य = पत्र से या सेहे के कांटे से ही मैं (विषं निरवोचम्) विष को दूर कर सकता हूं। और या (पर्णधेः) पर्णधि नामक वृक्ष = लोध्र के ही (प्र-अञ्जनात्) प्रलेप से (उत) भी विष को दूर कर सकता हूं। या (अपाष्ठात् शृंगात्) दूर देश से लाये ‘शृंग’ अजशृंगी नामक, ओषधि से या (कुल्मलात्) ‘कुल्मल’ नामक पद्म ओषधि से (अहं) मैं (विधम्) विष को (निर्अवोचम्) दूर करता हूं। अथवा—(शल्यात्) वाण से या (अपाष्ठात् शृंगात) टूटे हुए सींग से या (कुल्मलात्) प्राणी के मल से उत्पन्न, (पर्णधेः) विषैले सरकण्डे से और (प्रांजनात्) या विषैले लेप से उत्पन्न हुए विष को भी मैं दूर करता हूं। यह सायणसम्मत अर्थ है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गरुत्मान् ऋषिः। तक्षको देवता। १-८ अनुष्टुभः। अष्टर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Antidote to Poison

    Meaning

    I remove the poison by the leaf and plaster of parnadhi, by Ajashrngi brought from far, or by Kulmala also called Padma.

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    Translation

    I have taken away the poison from the point of the arrow, from the anointment, from the winged shaft, from the barb (apastha), from the horn and from the neck also I have exorcised the poison.

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    Translation

    I, the physician make poison ineffectual with the use of the leave and the plaster of the Parnadhi, the medicinal plant (known as Lodhra). I remove the effect of poison by the herb Shring (known as Ajashringi) brought away from the distant place and I make the poison ineffectual by the use of Kulmala, a herb of this name.

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    Translation

    I charm away the poison with the thorn of a porcupine, with the paint of Parndhi, with Ajshringhi brought from a distant place, and by the use of Kulmal herb.

    Footnote

    Parndhi, Ajshinghi and Kulmal are the names of herbs, the use or which removes the ill effect of the poison.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(शल्यात्। विषम्) निः। (अवोचम्) मतम्-म० ४। (प्राञ्जनात्) अञ्जु व्यक्तिगतिम्रक्षणेषु-ल्युट्। प्रलेपात् (उत) अपि (पर्णधेः) पत्रयुक्तशरकाण्डात् (अपाष्ठात्) अप+आङ्+ष्ठा-क। अपस्थिताद् बाणफलात् (शृङ्गात्) अ० २।३२।६। शॄ हिंसायाम्-गन्, नुट् च। शृणातीति शृङ्गं तीक्ष्णम्। तीक्ष्णात् (कुल्मलात्) अ० २।३०।३। बाणदण्डच्छिद्रात्। गतमन्यत् ॥

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