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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 9

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 9/ मन्त्र 8
    सूक्त - भृगुः देवता - त्रैककुदाञ्जनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - आञ्जन सूक्त

    त्रयो॑ दा॒सा आञ्ज॑नस्य त॒क्मा ब॒लास॒ आदहिः॑। वर्षि॑ष्ठः॒ पर्व॑तानां त्रिक॒कुन्नाम॑ ते पि॒ता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रय॑: । दा॒सा: । आ॒ऽअञ्ज॑नस्य । त॒क्मा । ब॒लास॑: । आत् । अहि॑: । वर्षि॑ष्ठ: । पर्व॑तानाम् । त्रि॒ऽक॒कुत् । नाम॑ । ते॒ । पि॒ता ॥९.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रयो दासा आञ्जनस्य तक्मा बलास आदहिः। वर्षिष्ठः पर्वतानां त्रिककुन्नाम ते पिता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रय: । दासा: । आऽअञ्जनस्य । तक्मा । बलास: । आत् । अहि: । वर्षिष्ठ: । पर्वतानाम् । त्रिऽककुत् । नाम । ते । पिता ॥९.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 9; मन्त्र » 8

    भावार्थ -
    (आ-अञ्जनस्य) इस ज्ञानरूप अञ्जन के (त्रयः दासाः) तीन दास अर्थात् विनाश करने योग्य पदार्थ हैं, प्रथम (तक्मा) कृच्छ जीवन और दुःखमय जीवन, (बलासः) आत्मा का बलनाशक निराशावाद और (आत् अहिः) उससे उतर कर सर्प के समान तप और यशः-शरीर पर आघात करने वाला, विषय-वासनामय काम इन तीनों का ज्ञानरूप वज्र विनाशक है। लोक में अञ्जन के द्वारा ज्वर, अतीसार और विषविकार नष्ट होते हैं। हे ज्ञानरूप अञ्जन ! (ते पिता) तेरा पिता पालक (पर्वतानां) पर्वतों में से, पालना करने में समर्थों में से (वर्षिष्ठः) ज्ञान-जल का वर्षाने वाला, सब से अधिक वृद्ध और सब से अधिक समर्थ (त्रिककुद्) त्रिककुत्, तीनों लोकों में श्रेष्ठ, त्रिनेत्र रूप, त्रिअम्बक सूर्य और ‘भूः भुवः स्वः’ स्वरूप वेदत्रयी प्रसिद्ध है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भगुर्ऋषिः। त्रैककुदमञ्जनं देवता। १, ४-१० अनुष्टुभः। कुम्मती। ३ पथ्यापंक्तिः। दशर्चं सूक्तम्।

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