Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 28

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 28/ मन्त्र 12
    सूक्त - अथर्वा देवता - अग्न्यादयः छन्दः - ककुम्मत्यनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त

    आ त्वा॑ चृतत्वर्य॒मा पू॒षा बृह॒स्पतिः॑। अह॑र्जातस्य॒ यन्नाम॒ तेन॒ त्वाति॑ चृतामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । त्वा॒ । चृ॒त॒तु॒ । अ॒र्य॒मा । आ । पू॒षा । आ । बृह॒स्पति॑: । अह॑:ऽजातस्य । यत् । नाम॑ । तेन॑ । त्वा॒ । अति॑ । घृ॒ता॒म॒सि॒ ॥२८.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ त्वा चृतत्वर्यमा पूषा बृहस्पतिः। अहर्जातस्य यन्नाम तेन त्वाति चृतामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । त्वा । चृततु । अर्यमा । आ । पूषा । आ । बृहस्पति: । अह:ऽजातस्य । यत् । नाम । तेन । त्वा । अति । घृतामसि ॥२८.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 28; मन्त्र » 12

    भावार्थ -
    (अर्यमा) समस्त अरि = विघ्नकारियों, काम, क्रोध आदि भीतरी दुष्ट भावों को यमन करने वाला, (पूषा) सब का पोषक (बृहस्पतिः) बृहत्-महान् लोकों का या बृहती वेदवाणी का जो स्वामी है वह (त्वा) तुझ आत्मा को (चृततु) बांध ले। (अह-र्जातस्य) दिन में उत्पन्न होने वाले शुभ पदार्थ सूर्य का (यत् नाम) जो तेज है (तेन) उससे (त्वा) तुझ पुरुष, उपनीत बालक को हम आचार्यगण भी (अति चृतामसि) सब दुष्ट भावों का अतिक्रमण करके इस भगवान् के पापनाशक, शरीरपोषक और ज्ञानवर्धक तीन गुणों से बने त्रिसूत्र से बांधते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। त्रिवृत देवता। १-५, ८, ११ त्रिष्टुभः। ६ पञ्चपदा अतिशक्वरी। ७, ९, १०, १२ ककुम्मत्यनुष्टुप् परोष्णिक्। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top