Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 34

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 34/ मन्त्र 3
    सूक्त - चातन देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त

    यः पर॑स्याः परा॒वत॑स्ति॒रो धन्वा॑ति॒रोच॑ते। स नः॑ पर्ष॒दति॒ द्विषः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । पर॑स्या: । प॒रा॒ऽवत॑:। ति॒र: । धन्व॑ । अ॒ति॒ऽरोच॑ते । स: । न॒: । प॒र्ष॒त् । अति॑ । द्विष॑:॥३४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यः परस्याः परावतस्तिरो धन्वातिरोचते। स नः पर्षदति द्विषः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । परस्या: । पराऽवत:। तिर: । धन्व । अतिऽरोचते । स: । न: । पर्षत् । अति । द्विष:॥३४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 34; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    (यः) जो परमेश्वर (परस्याः परावतः) दूर से भी दूर अर्थात् (धन्व तिरः) द्युलोक और अन्तरिक्ष को भी पार कर (अतिरोचते) सब से अधिक प्रकाशमान है (सः नः द्विपः अतिपर्षत्) वह हमें हमारे शत्रुओं से पार करे।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - चातन ऋषिः। अग्निर्देवता। १-५ गायत्र्यः पंचर्चं सूक्तम्।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top