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अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 11

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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 11/ मन्त्र 7
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - द्विपदा प्राजापत्या बृहती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    ऐनं॑ प्रि॒यंग॑च्छति प्रि॒यः प्रि॒यस्य॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ए॒न॒म् । प्रि॒यम् । ग॒च्छ॒ति॒ । प्रि॒य: । प्रि॒यस्य॑ । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥११.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऐनं प्रियंगच्छति प्रियः प्रियस्य भवति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । एनम् । प्रियम् । गच्छति । प्रिय: । प्रियस्य । भवति । य: । एवम् । वेद ॥११.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 11; मन्त्र » 7

    भावार्थ -
    (यः एवं वेद) जो इस प्रकार के तत्व को जानता है (एनं प्रिय आ गच्छति) उसको समस्त प्रिय पदार्थ प्राप्त होजाते हैं। (प्रियः प्रियस्य भवति) अपने प्रिय लगने वाले जन को स्वयं भी वह प्रिय हो जाता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १ देवी पंक्तिः, २ द्विपदा पूर्वा त्रिष्टुप् अतिशक्करी, ३-६, ८, १०, त्रिपदा आर्ची बृहती (१० भुरिक्) ७, ९, द्विपदा प्राजापत्या बृहती, ११ द्विपदा आर्ची, अनुष्टुप्। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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