अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 24/ मन्त्र 5
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - राष्ट्रसूक्त
ज॒रां सु ग॑च्छ॒ परि॑ धत्स्व॒ वासो॒ भवा॑ गृष्टी॒नाम॑भिशस्ति॒पा उ॑। श॒तं च॒ जीव॑ श॒रदः॑ पुरू॒ची रा॒यश्च॒ पोष॑मुप॒संव्य॑यस्व ॥
स्वर सहित पद पाठज॒राम्। सु। ग॒च्छ॒। परि॑। ध॒त्स्व॒। वासः॑। भव॑। गृ॒ष्टी॒नाम्। अ॒भि॒श॒स्ति॒ऽपाः। ऊं॒ इति॑। श॒तम्। च॒। जीव॑। श॒रदः॑। पु॒रू॒चीः। रा॒यः। च॒। पोष॑म्। उ॒प॒ऽसंव्य॑यस्व ॥२४.५॥
स्वर रहित मन्त्र
जरां सु गच्छ परि धत्स्व वासो भवा गृष्टीनामभिशस्तिपा उ। शतं च जीव शरदः पुरूची रायश्च पोषमुपसंव्ययस्व ॥
स्वर रहित पद पाठजराम्। सु। गच्छ। परि। धत्स्व। वासः। भव। गृष्टीनाम्। अभिशस्तिऽपाः। ऊं इति। शतम्। च। जीव। शरदः। पुरूचीः। रायः। च। पोषम्। उपऽसंव्ययस्व ॥२४.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 24; मन्त्र » 5
विषय - राजा के सहायक रक्षक और विशेष वस्त्र।
भावार्थ -
हे राजन् ! तू (जरां) बुढ़ापे तक (सु) भली प्रकार, सुख से (गच्छ) पहुंच। (वासः) वस्त्र (परिधात्व) धारण कर और (गृष्टीनाम् = कृष्टीनाम्) समस्त प्रजा के पुरुषों की (अभिशस्तिपा उ भव) चारों ओर से होने वाले हिंसाकारी आक्रमणों या दुष्ट अपवादों से भी रक्षा करने में समर्थ हो। (शतम् शरदः जीव) तू सौ बरस तक प्राण धारण कर। (पुरूचीः) बहुत से सुखों से पूर्ण (रायः च) धन की (पोषम्) पुष्टि, समृद्धि को (उप सं व्ययस्व) अपने ऊपर धारण कर। अर्थात्—राजा के ऊपर प्रजा के विशाल, लम्बे चौड़े शरीर को बचाने का जो विस्तृत, विशाल कार्य है उसको सदा स्मरणा दिलाने के लिये राजा को विशेष, असाधारण लम्बा चौड़ा वस्त्र पहनाया जाता है। इसी कारण उसको नाना प्रकार के धन, कोश समृद्धि रखने का भी वेद में आदेश है। यह मन्त्र की ध्वनि है।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः देवता। १-३ अनुष्टुप, ४-६, ८ त्रिष्टुप, ७ त्रिपदाआर्षीगायत्री।
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