अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 24/ मन्त्र 1
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - राष्ट्रसूक्त
येन॑ दे॒वं स॑वि॒तारं॒ परि॑ दे॒वा अधा॑रयन्। तेने॒मं ब्र॑ह्मणस्पते॒ परि॑ रा॒ष्ट्राय॑ धत्तन ॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑। दे॒वम्। स॒वि॒तार॑म्। परि॑। दे॒वाः। अधा॑रयन्। तेन॑। इ॒मम्। ब्र॒ह्म॒णः॒। प॒ते॒। परि॑। रा॒ष्ट्राय॑। ध॒त्त॒न॒ ॥२४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
येन देवं सवितारं परि देवा अधारयन्। तेनेमं ब्रह्मणस्पते परि राष्ट्राय धत्तन ॥
स्वर रहित पद पाठयेन। देवम्। सवितारम्। परि। देवाः। अधारयन्। तेन। इमम्। ब्रह्मणः। पते। परि। राष्ट्राय। धत्तन ॥२४.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
विषय - राजा के सहायक रक्षक और विशेष वस्त्र।
भावार्थ -
(येन) जिस प्रयोजन से (सवितारम्) सर्व प्रेरक (देवम्) विजिगीषु राजा को (देवाः) युद्धविजयी अन्य राजा लोग (परि अधारयन्) चारों ओर से रक्षा करते, उसे घेरे रहते हैं (तेन) उसी प्रयोजन या उद्देश्य से (ब्रह्मणस्पते) ब्रह्म, वेद के पालक स्वामी, वेदज्ञ विद्वान् जन आप लोग भी (राष्ट्राय) राष्ट्र की रक्षा के लिये (परि धत्तन) उसकी रक्षा करो और उसके चारों ओर विराजो। प्रेरक अग्रणी नेता की बल वृद्धि के लिये योद्धाओं के समान वेदज्ञ विद्वान् भी राजा की रक्षा करें और उस का साथ दें। अथवा—(येन) जिस वस्त्र या पोशाक से विजयी योद्धागण अपने अग्रणी को (परि अधारयन्) सुशोभित करते हैं (तेन) उसी से हे (ब्रह्मणस्पते) वेदज्ञ विद्वान् तथा अन्य विद्वद्गण आप लोग मिलकर भी (राष्ट्रीय) राष्ट्र के लिये (इमं) इस राजा को (परिधत्तन) आच्छादित करो।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः देवता। १-३ अनुष्टुप, ४-६, ८ त्रिष्टुप, ७ त्रिपदाआर्षीगायत्री।
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