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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 24/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - राष्ट्रसूक्त

    परी॒ममिन्द्र॒मायु॑षे म॒हे क्ष॒त्राय॑ धत्तन। यथै॑नं ज॒रसे॒ नयां ज्योक्क्ष॒त्रेऽधि॑ जागरत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑। इ॒मम्। इन्द्र॑म्। आयु॑षे। म॒हे। क्ष॒त्राय॑। ध॒त्त॒न॒। यथा॑। ए॒न॒म्। ज॒रसे॑। न॒याम्। ज्योक्। क्ष॒त्रे। अधि॑। जा॒ग॒र॒त् ॥२४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परीममिन्द्रमायुषे महे क्षत्राय धत्तन। यथैनं जरसे नयां ज्योक्क्षत्रेऽधि जागरत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि। इमम्। इन्द्रम्। आयुषे। महे। क्षत्राय। धत्तन। यथा। एनम्। जरसे। नयाम्। ज्योक्। क्षत्रे। अधि। जागरत् ॥२४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 24; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    (इमम् इन्द्रम्) इस राजोचित गुणैश्वर्य से सम्पन्न राजा को (आयुषे) दीर्घ आयु प्राप्त कराने और (महे क्षत्राय) बड़े भारी क्षात्रबल को प्राप्त कराने के लिये हे विद्वान् पुरुषो ! (परिधत्तन) सब प्रकार से पुष्ट करो (यथा) जिससे (एनम्) इसको हम (जरसे) वार्धक्य काल तक (नयान्) प्राप्त करा सकें। और वह (क्षत्रे अधि) राष्ट्र को क्षति से श्राण करने वाले बल के ऊपर (ज्योक्) चिरकाल तक (अधिजागरत्) जागृत सावधान होकर रहें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः देवता। १-३ अनुष्टुप, ४-६, ८ त्रिष्टुप, ७ त्रिपदाआर्षीगायत्री।

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