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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 24/ मन्त्र 8
    सूक्त - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - राष्ट्रसूक्त

    हिर॑ण्यवर्णो अ॒जरः॑ सु॒वीरो॑ ज॒रामृ॑त्युः प्र॒जया॒ सं वि॑शस्व। तद॒ग्निरा॑ह॒ तदु॒ सोम॑ आह॒ बृह॒स्पतिः॑ सवि॒ता तदिन्द्रः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हिर॑ण्यऽवर्णः। अ॒जरः॑। सु॒ऽवीरः॑। ज॒राऽमृ॑त्युः। प्र॒ऽजया॑। सम्। वि॒श॒स्व॒। तत्। अ॒ग्निः। आ॒ह॒। तत्। ऊं॒ इति॑। सोमः॑। आ॒ह॒। बृह॒स्पतिः॑। स॒वि॒ता। तत्। इन्द्रः॑ ॥२४.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हिरण्यवर्णो अजरः सुवीरो जरामृत्युः प्रजया सं विशस्व। तदग्निराह तदु सोम आह बृहस्पतिः सविता तदिन्द्रः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हिरण्यऽवर्णः। अजरः। सुऽवीरः। जराऽमृत्युः। प्रऽजया। सम्। विशस्व। तत्। अग्निः। आह। तत्। ऊं इति। सोमः। आह। बृहस्पतिः। सविता। तत्। इन्द्रः ॥२४.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 24; मन्त्र » 8

    भावार्थ -
    (हिरण्यवर्णः) हित और रमणीय वर्ण वाला, सुन्दर, कान्तिमान् अथवा हिरण्य=सुवर्ण के समान तेजस्वी अथवा सुवर्ण, ऐश्वर्य का सदा वरण करने वाले या सुवर्ण के समान सभी के द्वारा वरण करने योग्य श्रेष्ठ, (अजरः) जरा रहित, (सुवीरः) उत्तम वीर्यवान् या उत्तम वीर पुत्रों से युक्त या उत्तम वीर भटों से युक्त और स्वयं उत्तम वीर और (जरामृत्यु:) बुढ़ापे के अनन्तर ही मृत्यु अर्थात् शरीर को त्याग करने वाला अकाल मृत्यु से रहित होकर (प्रजया) प्रजा के साथ (सं विशस्व) पृथ्वी पर बस, नगर बसा कर रह। (अग्निः) ज्ञानी, परमेश्वर अथवा ज्ञानवान् पुरुषों का (तत्) यही (आह) उपदेश है। (सोमः तत् आह) सबके प्रेरक, शम दम आदि सम्पन्न योगिजन का यही आदेश है। (बृहस्पतिः) बृहती, वेदवाणी का पालक विद्वान् अथवा बृहती पृथ्वी के स्वामी महाराज (सविता) सबके प्रेरक और उत्पादक ओर (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् राजा या परमेश्वर भी (तत् आह) उसी बात का उपदेश या आज्ञा करता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः देवता। १-३ अनुष्टुप, ४-६, ८ त्रिष्टुप, ७ त्रिपदाआर्षीगायत्री।

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