अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 132/ मन्त्र 2
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
अला॑बुकं॒ निखा॑तकम् ॥
स्वर सहित पद पाठअला॑बुक॒म् । निखा॑तकम् ॥१३२.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अलाबुकं निखातकम् ॥
स्वर रहित पद पाठअलाबुकम् । निखातकम् ॥१३२.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 2
विषय - missing
भावार्थ -
परन्तु तूम्बा तो बहुत चंचल होता है उसके विपरीत वह (अलाबुकम्) उस तूम्बे के भी समान है जो (निखातकम्) भीतर से खनकर खोखला कर लिया गया है। जिस प्रकार भीतर से खोखला तूम्बा जलपात्र बन कर अपने भीतर जलों का आश्रय रहता है उसी प्रकार वह अग्रणी राजा समस्त प्रजाओं का आश्रय रहता है। अथवा—
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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