अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 132/ मन्त्र 7
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
न व॑निष॒दना॑ततम् ॥
स्वर सहित पद पाठन । व॑निष॒त् । अना॑ततम् ॥१३२.७॥
स्वर रहित मन्त्र
न वनिषदनाततम् ॥
स्वर रहित पद पाठन । वनिषत् । अनाततम् ॥१३२.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 7
विषय - missing
भावार्थ -
वह (अनाततम्) अविस्तृत, स्वल्प बल को (न वनिषत्) नहीं स्वीकार करती है।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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