अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 132/ मन्त्र 3
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
क॑र्करि॒को निखा॑तकः ॥
स्वर सहित पद पाठक॒र्क॒रि॒क: । निखा॑तक: ॥१३२.३॥
स्वर रहित मन्त्र
कर्करिको निखातकः ॥
स्वर रहित पद पाठकर्करिक: । निखातक: ॥१३२.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 3
विषय - missing
भावार्थ -
वह अग्रणी पुरुष (कर्करिकः) कर्करी के फल के समान (निखातकः) भीतर से खुदा हुआ, खोखला किया होता है। वह जिस प्रकार अपने ऊपर लगे सप्त स्वर के तन्त्रियों की ध्वनि को प्रबल और मधुर करता है उसी प्रकार राजा भी सर्वाश्रय होकर सबके उत्साहों, हर्षों और इच्छाओं को द्विगणित करता है।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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