अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 132/ मन्त्र 3
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
53
क॑र्करि॒को निखा॑तकः ॥
स्वर सहित पद पाठक॒र्क॒रि॒क: । निखा॑तक: ॥१३२.३॥
स्वर रहित मन्त्र
कर्करिको निखातकः ॥
स्वर रहित पद पाठकर्करिक: । निखातक: ॥१३२.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
[वह परमात्मा] (कर्करिकः) बनानेवाला (निखातकः) दृढ़ जमा हुआ है ॥३॥
भावार्थ
वह ब्रह्म निराधार अकेला होकर सबका आधार और बनानेवाला है, वायु आदि पदार्थ उसकी आज्ञा में चलते हैं। सब मनुष्य उसकी उपासना करें ॥१-४॥
टिप्पणी
३−(कर्करिकः) फर्फरीकादयश्च। उ० ४।२०। डुकृञ् करणे-ईकन्, कर्करादेशः, ईकारस्य इकारः। कर्ता। रचयिता (निखातकः) म० २। दृढीकृत्य स्थापितः ॥
विषय
प्राणसाधना व प्रभु का मनन
पदार्थ
१. वे प्रभु करिक: सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के पदार्थों के कर्ता हैं। निखातकः स्वयं स्वस्थान में सढरूप से स्थित है, 'कूटस्थ, अचल व ध्रुव' हैं। स्वयं गतिशून्य होते हुए सारे ब्रह्माण्ड को गति देनेवाले हैं [तदेजति तन्नजति] २. तत्-उस ब्रह्म को वात:-वायु के समान निरन्तर क्रियाशील पुरुष अथवा प्राणसाधना करनेवाला पुरुष [वायुः प्राणो भूत्वा] उन्मथायति-उत्तमतया मन्थित करता है। यह प्राणसाधक ही दीस प्रज्ञावाला बनकर प्रभु का मनन कर पाता है।
भावार्थ
प्रभु सर्वकर्ता व स्वस्थान में सुदृढ़ हैं-कूटस्थ हैं। प्राणसाधक पुरुष ही प्रभु का मनन कर पाता है।
भाषार्थ
(कर्करिकः) जगत् की बार-बार रचना करनेवाला, या जन्म-मरण का बार-बार विधान करनेवाला परमेश्वर ही (निखातकः) नितरां अविद्या की जड़ उखेड़ देता है।
विषय
missing
भावार्थ
वह अग्रणी पुरुष (कर्करिकः) कर्करी के फल के समान (निखातकः) भीतर से खुदा हुआ, खोखला किया होता है। वह जिस प्रकार अपने ऊपर लगे सप्त स्वर के तन्त्रियों की ध्वनि को प्रबल और मधुर करता है उसी प्रकार राजा भी सर्वाश्रय होकर सबके उत्साहों, हर्षों और इच्छाओं को द्विगणित करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
missing
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
Brahma that creates and winds up the world of existence is the One that uproots darkness and ignorance.
Translation
That all-creating God is firmly established.
Translation
That all-creating God is firmly established.
Translation
He is propelled by the vital breaths.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(कर्करिकः) फर्फरीकादयश्च। उ० ४।२०। डुकृञ् करणे-ईकन्, कर्करादेशः, ईकारस्य इकारः। कर्ता। रचयिता (निखातकः) म० २। दृढीकृत्य स्थापितः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমাত্মগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
[এই পরমাত্মা] (কর্করিকঃ) রচয়িতা (নিখাতকঃ) দৃঢ়ভাবে স্থাপিত/স্থিত/বর্তমান ॥৩॥
भावार्थ
এই ব্রহ্ম নিরাধার একাকী হয়ে সকলের আধা এবং নির্মাতা, বায়ু আদি পদার্থ পরমেশ্বরের আজ্ঞায় কার্য করে। সকল মনুষ্য সেই পরমেশ্বরের উপাসনা করুক ॥১-৪॥
भाषार्थ
(কর্করিকঃ) জগতের বার-বার রচনাকারী, বা জন্ম-মরণের বার-বার বিধাতা পরমেশ্বরই (নিখাতকঃ) নিরন্তর অবিদ্যার মূল উৎখাত/উৎপাটিত করেন।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal