अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 137/ मन्त्र 2
सूक्त - बुधः
देवता - विश्वे देवाः, ऋत्विक्स्तुतिः
छन्दः - जगती
सूक्तम् - सूक्त १३७
कपृ॑न्नरः कपृ॒थमुद्द॑धातन चो॒दय॑त खु॒दत॒ वाज॑सातये। नि॑ष्टि॒ग्र्य: पु॒त्रमा च्या॑वयो॒तय॒ इन्द्रं॑ स॒बाध॑ इ॒ह सोम॑पीतये ॥
स्वर सहित पद पाठकृप॑त् । न॒र॒: । क॒पृथम् । उत् । द॒धा॒त॒न॒ । चो॒दय॑त । खु॒दत॑ । वाज॑ऽसातये ॥ नि॒ष्टि॒ग्र्य॑: । पु॒त्रम् । आ । च्य॒व॒य॒ । ऊ॒तये॑ । इन्द्र॑म् । स॒ऽबाध॑: । इ॒ह । सोम॑ऽपीतये ॥१३७.२॥
स्वर रहित मन्त्र
कपृन्नरः कपृथमुद्दधातन चोदयत खुदत वाजसातये। निष्टिग्र्य: पुत्रमा च्यावयोतय इन्द्रं सबाध इह सोमपीतये ॥
स्वर रहित पद पाठकृपत् । नर: । कपृथम् । उत् । दधातन । चोदयत । खुदत । वाजऽसातये ॥ निष्टिग्र्य: । पुत्रम् । आ । च्यवय । ऊतये । इन्द्रम् । सऽबाध: । इह । सोमऽपीतये ॥१३७.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 137; मन्त्र » 2
विषय - राजपद।
भावार्थ -
हे (नरः) नेता लोगो ! हे पुरुषो ! राजा इन्द्र (कृपत्) सुख कों एवं प्रजापालक पदको पूर्ण पालन और विस्तृत करने, एवं निभाने में समर्थ है। उसी (कपृथम्) सुख के पालक, पूर्ण और विस्तृत करने वाले को (उत् दधातन) उंचे पदपर स्थापित करो। उसको (वाजसातये) युद्ध करने और ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिये (चोदयत) प्रेरित करो और (खुदत) उसको प्रसन्न एवं सुखी रक्खो। हे (सबाधः) शत्रुओं को एक साथ मिलकर विनाश करने वाले वीर पुरुषो ! आप लोग (इह) इस राष्ट्र में (सोमपीतय) सोम पद, सर्वप्रेरक राजा के परमपद या राष्ट्र के भोग के लिये (निष्टिग्रयः पुत्रम्) गुप्त रूप से सबको वश करने का उपदेश करने वाली राजसभा के पुत्र के समान आज्ञाकारी, राष्ट्र के पुरुषों के रक्षक (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवान् पुरुष को (ऊतये) राज्य की रक्षा के लिये (च्यावय) अधिकार प्रदान करो।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १. शिरिम्बिठिः, २ बुधः, ३, ४ ६, ययातिः। ७–११, तिरश्चीराङ्गिरसो द्युतानो वा मारुत ऋषयः। १, लक्ष्मीनाशनी, २ वैश्वीदेवी, ३, ४-६ सोमः पत्र मान इन्द्रश्च देवताः। १, ३, ४-६ अनुष्टुभौ, ५-१२-अनुष्टुभः १२-१४ गायत्र्यः।
इस भाष्य को एडिट करें