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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 34

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 34/ मन्त्र 13
    सूक्त - गृत्समदः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-३४

    यः स॒प्तर॑श्मिर्वृष॒भस्तुवि॑ष्मान॒वासृ॑ज॒त्सर्त॑वे स॒प्त सिन्धू॑न्। यो रौ॑हि॒णमस्फु॑र॒द्वज्र॑बाहु॒र्द्यामा॒रोह॑न्तं॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । स॒प्तऽर॑श्मि: । वृ॒ष॒भ: । तुवि॑ष्मान् । अ॒व॒ऽअसृ॑जत् । सर्त॑वे । स॒प्त । सिन्धू॑न् ॥ य: । रौ॒हि॒णम् । अस्‍फु॑रत् । वज्र॑बाहु: । द्याम् । आ॒ऽरोह॑न्तम् । स: । ज॒ना॒स॒: । इन्द्र॑: ॥३४.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यः सप्तरश्मिर्वृषभस्तुविष्मानवासृजत्सर्तवे सप्त सिन्धून्। यो रौहिणमस्फुरद्वज्रबाहुर्द्यामारोहन्तं स जनास इन्द्रः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । सप्तऽरश्मि: । वृषभ: । तुविष्मान् । अवऽअसृजत् । सर्तवे । सप्त । सिन्धून् ॥ य: । रौहिणम् । अस्‍फुरत् । वज्रबाहु: । द्याम् । आऽरोहन्तम् । स: । जनास: । इन्द्र: ॥३४.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 34; मन्त्र » 13

    भावार्थ -
    (यः) जो परमात्मा (सप्तरश्मिः) सूर्य के समान सात रश्मियों अर्थात् सात बड़े बड़े नियामक बलों से सम्पन्न है। वह (तुविष्मान्) वायु के समान बड़ा बलवान्, (वृषभः) मेघ के समान समस्त सुखों का वर्षा करने वाला है। वह (सप्त सिन्धून्) सात सिन्धुओं, बड़े बड़े तत्वों, सात प्राणों के समान (सर्तवे) सर्वत्र गति करने के लिये ही (अवासृजत्) बनाता है। (यः) जो (वज्रबाहुः) हाथ में वज्र लिये, संहारकारी, लकड़हारे के समान (द्याम्) आकाश की तरफ (आरोहन्तम्) पुनः बीज से अंकुरित होकर फैलने वाले वट के समान विकट रूप से फैलने वाले (रोहिणम्) संसाररूप रौहिण या बट को (अस्फुरत्) काट देता है। हे (जनासः) मनुष्यो ! (सः इन्द्रः) वह इन्द्र, प्रभु है। राजा के पक्ष में—राज्य के सप्त अंग, रूप सात रश्मियों से युक्त होकर वह सूर्य के समान तेजस्वी, वायु के समान बलवान्, राज्य का कर उठाने से वृषभ के समान अथवा प्रजाओं पर ऐश्वर्य वृद्धि करने वाला होने से मेघ के समान होकर अपने सातों (सिन्धून्) स्रोतों को फैलने के लिये ही उत्पन्न करता है। और जो (वज्रबाहुः) खड्ग हाथ में लेकर (द्याम् आरोहन्तम्) आकाश में फैलते हुए (रौहिणम्) वट के समान क्रम से अपनी जड़ें फैलाने वाले (रौहिणम्) वट स्वभाव के शत्रु को (अस्फुरत्) विनाश करता है। (सः इन्द्रः) हे मनुष्यो ! वह राजा इन्द्र वायु या विद्युत् के समान है। बड़े प्रबल राजा का वायु और कुटिल गर्वी शत्रु राजा का शाल्मलि के दृष्टान्त से वर्णन देखो शान्तिपर्व अ० १५३। १५४।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गृत्ससद ऋषिः। इन्द्रो देवता। त्रिष्टुभः। सामसूक्तम्। अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

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