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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 76

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 76/ मन्त्र 3
    सूक्त - वसुक्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-७६

    कस्ते॒ मद॑ इन्द्र॒ रन्त्यो॑ भू॒द्दुरो॒ गिरो॑ अ॒भ्युग्रो वि धा॑व। कद्वाहो॑ अ॒र्वागुप॑ मा मनी॒षा आ त्वा॑ शक्यामुप॒मम्राधो॒ अन्नैः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क । ते॒ । मद॑: । इ॒न्द्र॒ । रन्त्य॑: । भू॒त् । दुर॑: । गिर॑: । अ॒भि । उ॒ग्र: । वि । धा॒व॒ ॥ कत् । वाह॑: । अ॒र्वाक् । उप॑ । मा॒ । म॒नी॒षा । आ । त्वा॒ । श॒क्या॒म् । उ॒प॒ऽमम् । राध॑: । अन्नै॑: ॥७६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कस्ते मद इन्द्र रन्त्यो भूद्दुरो गिरो अभ्युग्रो वि धाव। कद्वाहो अर्वागुप मा मनीषा आ त्वा शक्यामुपमम्राधो अन्नैः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क । ते । मद: । इन्द्र । रन्त्य: । भूत् । दुर: । गिर: । अभि । उग्र: । वि । धाव ॥ कत् । वाह: । अर्वाक् । उप । मा । मनीषा । आ । त्वा । शक्याम् । उपऽमम् । राध: । अन्नै: ॥७६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 76; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    अध्यात्म में—हे (इन्द्र) आत्मन् ! (ते) तेरा (कः) यह कौनसा (रन्त्यः) अत्यन्त अधिक रमण करने योग्य (मदः) हर्ष और आनन्द (भूत्) है। जिस का वर्णन नहीं किया जा सकता। तू (उग्रः) अति बलवान होकर हमारे (दुरः) द्वारों के समान (गिरः) उत्तम वाणियों को (अभि वि धाव) लक्ष्य करके विविध रूपों से प्राप्त हो। हे आत्मन् ! (कद्) तू कब (वाहः) प्रवाह स्वरूप महासिन्धु के समान होकर (अर्वाक्) साक्षात् होगा ? और कब (मनीषा) समस्त अर्थों को साक्षात् करने वाली परम प्रज्ञा रूप होकर तू (मा उप) मुझे प्राप्त होगा। और कब (त्वा उपमं) तेरे समीप होकर मैं (अन्नैः) भोग किये जाकर भी क्षीण न होने वाले तेरे अक्षय सुखों के सहित (राधः) परम ऐश्वर्य के (आ शक्याम्) प्राप्त करूंगा। राजा के पक्ष में—हे (इन्द्र) राजन ! (ते कः मदः रन्त्यः भूत्) तेरा कौनसा आनन्द सबसे अधिक चित्त रमाने वाला है। वह ही तुझे प्राप्त हो। तू (उग्रः) उग्र, अति बलवान होकर (दुरः) नगर के द्वारों और (गिरः) हमारी वाणियों से स्वागत करते हैं। (ते वाहः) तेरा रथ (कत्) कब (उप) हमारे पास आवे (मनीषा मा उप) तेरी मति मुझ प्रजाजन की तरफ हो। और मैं (त्वा) तेरे (उपमं) समीप पहुंच कर तेरी तरह (अन्नैः राधः) अन्नों सहित ऐश्वर्य को (आ शक्याम्) प्राप्त कर सकूं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसुक ऐन्द्रो ऋषिः। इन्द्रो देवता। त्रिष्टुभः। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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