अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 88/ मन्त्र 5
स सु॒ष्टुभा॒ स ऋक्व॑ता ग॒णेन॑ व॒लं रु॑रोज फलि॒गं रवे॑ण। बृह॒स्पति॑रु॒स्रिया॑ हव्य॒सूदः॒ कनि॑क्रद॒द्वाव॑शती॒रुदा॑जत् ॥
स्वर सहित पद पाठस: । सु॒ऽस्तु॒भा॑ । स: । ऋक्व॑ता । ग॒णेन॑ । व॒लम् । रु॒रो॒ज॒ । फ॒लि॒ऽगम् । र॒वे॑ण ॥ बृह॒स्पति॑: । उ॒स्रिया॑: । ह॒व्य॒ऽसूद॑: । कनि॑क्रदत् । वाव॑शती: । उत् । आ॒ज॒त् ॥८८.५॥
स्वर रहित मन्त्र
स सुष्टुभा स ऋक्वता गणेन वलं रुरोज फलिगं रवेण। बृहस्पतिरुस्रिया हव्यसूदः कनिक्रदद्वावशतीरुदाजत् ॥
स्वर रहित पद पाठस: । सुऽस्तुभा । स: । ऋक्वता । गणेन । वलम् । रुरोज । फलिऽगम् । रवेण ॥ बृहस्पति: । उस्रिया: । हव्यऽसूद: । कनिक्रदत् । वावशती: । उत् । आजत् ॥८८.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 88; मन्त्र » 5
विषय - परमेश्वर सेनापति राजा।
भावार्थ -
जिस प्रकार (बृहस्पतिः) बड़ा सेनापति (सुष्टुभिः) शत्रु को स्तम्भन करने वाले (ऋक्वता) ज्ञानवान् (गणेन) सेनागण से (फलिगं वलं) शस्त्रास्त्र से युक्त घेरने वाले शत्रु को (रवेण) बड़ी गर्जना से (रुरोज) नाश करता है उसी प्रकार (सः) वह (बृहस्पतिः) वेद वाणी का—बड़े भारी ज्ञान का पालक (सु-स्तुभा) उत्तम रूप से स्तुति करने वाले (ऋक्वता) ऋग्वेद के मन्त्रों से युक्त (गणेन) विद्वद्गण से और (रवेण) वेदोपदेश के बल से (फलिगम्) फलिंग अर्थात् अंग भेदन कर देने वाले शस्त्रास्त्रों सहित आचढ़ने वाले (वलम्) व्यापक शत्रुगण को (रुरोज) तोड़ डालता है, पीड़ित करता है। और वह ही (कनिक्रदत्) उपदेश करता हुवा (वावशतीः) हम्भारव करने वाली (हव्यसूदः) घृत आदि पुष्टिकारक पदार्थों को प्रदान करने वाली (उस्त्रियः) गौओं के समान ज्ञानरस पूर्ण (वावशतीः) नित्य उपदेशमय शब्द करती हुई (हव्यसूदः) ग्राह्य ज्ञान को भरती हुई (उस्त्रियाः) वेदवाणियों को (उत् आजत्) प्रकट करता है।
टिप्पणी -
ष्टुभु स्तम्भे। भ्वादिः॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वामदेव ऋषिः। बृहस्पतिदेवता। त्रिष्टुभः। षडृर्चं सूक्तम्॥
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