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  • यजुर्वेद - अध्याय 37/ मन्त्र 8
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - स्वराडतिधृतिः स्वरः - षड्जः
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    म॒खस्य॒ शिरो॑ऽसि। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे।म॒खस्य॒ शिरो॑ऽसि। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे।म॒खस्य॒ शिरो॑ऽसि। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे।म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे।म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒खस्य॑। शिरः॑। अ॒सि॒। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खस्य॑। शिरः॑। अ॒सि॒। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खस्य॑। शिरः॑। अ॒सि॒। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। ॥८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मखस्य शिरो सि । मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे । मखस्य शिरो सि । मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे । मखस्य शिरो सि । मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे । मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मखस्य। शिरः। असि। मखाय। त्वा। मखस्य। त्वा। शीर्ष्णे। मखस्य। शिरः। असि। मखाय। त्वा। मखस्य। त्वा। शीर्ष्णे। मखस्य। शिरः। असि। मखाय। त्वा। मखस्य। त्वा। शीर्ष्णे। मखाय। त्वा। मखस्य। त्वा। शीर्ष्णे। मखाय। त्वा। मखस्य। त्वा। शीर्ष्णे। मखाय। त्वा। मखस्य। त्वा। शीर्ष्णे।॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 37; मन्त्र » 8
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे विद्वान, आपण (मखाय) ब्रह्मचर्य आश्रमरुप यज्ञाचे (शिरः) मस्तक (असि) आहात (आदर्श वा आदित्य ब्रह्मचारी आहात) यामुळे (मखाय) विद्याप्रसारासाठी (त्वा) आपणाला (आम्ही बोलावीत आहोत) (मखस्य) ज्ञानविषयक (शीष्णे) उत्कृष्ट कार्यासाठी (त्वा) आपणास आणि (मखस्य) विचाररूप यमाचे (त्वा) आपण (शिरः) शिरा प्रमाणे मुख्यस्थानीं (असि) आहात. (मखाय) गृहस्थांच्या व्यवहार, कार्य आदीसाठी (त्वा) आपणाला (बोलावत आहोत) (मखस्य) गृहाश्रयाच्या (शीर्ष्णे) उत्तम अंगाप्रमाणे म्हणजे शिराप्रमाणे (असि) आहात (मखाय) गृहस्थांच्या कार्यात संगती निर्माण करण्यासाठी आम्ही (त्वा) आपणास आणि (मखस्य) यज्ञाच्या (शीष्णे) उत्तम अंग म्हणजे शिराप्रमाणे असलेल्या (त्वा) आपणास करीत आहेत. (मखाय) उत्तम व्यवहारांच्या पूर्ततेसाठी (त्वा) आपणास आणि (मखस्य) सत्य व्यवहाराच्या पूर्ततेसाठी मार्गदर्शन करण्यासाठी आपणास बोलावत आहोत, कारण आपण (शीर्ष्णे) उत्तम अवयव शिराप्रमाणे असून) त्वा) आपणास (मखाय) योगाभ्यासासाठी (त्वा) आपणास करीत आहोत. (त्वा) आपणास (मखस्य) सांगोपांग योग शिषकविण्यासाठी (शीर्ष्णे) म्हणजे त्या सर्वोच्च विषयात मार्गदर्शन करण्यासाठी आणि (मखाय) ऐश्‍वर्यदाता असलेल्या (त्वा) आपणास निमंत्रित करतो आणि (त्वा) आपणाला (मखस्य) ऐश्‍वर्य देणार्‍या (शीर्ष्णे) सर्वोत्तम कायासाठी (त्वा) आम्ही आपला स्वीकार करीत आहोत. ॥8॥

    भावार्थ - भावार्थ - जे लोक स्वतः लोकाद्वारे आदर-सत्कार घेण्यास पात्र असतात (म्हणजे जे खरोखर पूज्य व आदरणीय असतात, त्यानी इतरांनाही सत्कारणीय करावे (त्यांना मार्गदर्शन करून आपणप्रमाणे उवम अवयव शिराप्रमाणे महत्त्वपूर्ण करावे). ॥8॥

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