ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 111/ मन्त्र 3
आ त॑क्षत सा॒तिम॒स्मभ्य॑मृभवः सा॒तिं रथा॑य सा॒तिमर्व॑ते नरः। सा॒तिं नो॒ जैत्रीं॒ सं म॑हेत वि॒श्वहा॑ जा॒मिमजा॑मिं॒ पृत॑नासु स॒क्षणि॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । त॒क्ष॒त॒ । सा॒तिम् । अ॒स्मभ्य॑म् । ऋ॒भ॒वः॒ । सा॒तिम् । रथा॑य । सा॒तिम् । अर्व॑ते । न॒रः॒ । सा॒तिम् । नः॒ । जैत्री॑म् । सम् । म॒हे॒त॒ । वि॒श्वऽहा॑ । जा॒मिम् । अजा॑मिम् । पृत॑नासु । स॒क्षणि॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ तक्षत सातिमस्मभ्यमृभवः सातिं रथाय सातिमर्वते नरः। सातिं नो जैत्रीं सं महेत विश्वहा जामिमजामिं पृतनासु सक्षणिम् ॥
स्वर रहित पद पाठआ। तक्षत। सातिम्। अस्मभ्यम्। ऋभवः। सातिम्। रथाय। सातिम्। अर्वते। नरः। सातिम्। नः। जैत्रीम्। सम्। महेत। विश्वऽहा। जामिम्। अजामिम्। पृतनासु। सक्षणिम् ॥ १.१११.३
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 111; मन्त्र » 3
अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 32; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 32; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्ते किं कुर्य्युरित्युपदिश्यते ।
अन्वयः
हे ऋभवो नरो यूयमस्मभ्यं विश्वहा रथाय सातिमर्वते च सातिमातक्षत पृतनासु सातिं जामिमजामिं सक्षणिं शत्रुं जित्वा नोऽस्मभ्यं जैत्रीं सातिं संमहेत ॥ ३ ॥
पदार्थः
(आ) अभितः (तक्षत) निष्पादयत (सातिम्) विद्यादिदानम् (अस्मभ्यम्) (ऋभवः) मेधाविनः (सातिम्) संविभागम् (रथाय) विमानादियानसमूहसिद्धये (सातिम्) अश्वशिक्षाविभागम् (अर्वते) अश्वाय (नरः) विद्यानायकाः (सातिम्) संभक्तिम् (नः) अस्मभ्यम् (जैत्रीम्) जयशीलाम् (सम्) (महेत) पूजयेत (विश्वहा) सर्वाणि दिनानि। अत्र कृतो बहुलमित्यधिकरणे क्विप्। सुपां सुलुगित्यधिकरणस्य स्थान आकारादेशः। (जामिम्) प्रसिद्धं (अजामिम्) अप्रसिद्धं वैरिणम् (पृतनासु) सेनासु (सक्षणिम्) सोढारम् ॥ ३ ॥
भावार्थः
ये विद्वांसोऽस्माकं रक्षकाः शत्रूणां विजेतारः सन्ति तेषां सत्कारं वयं सततं कुर्य्याम ॥ ३ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (ऋभवः) शिल्पक्रिया में अति चतुर (नरः) मनुष्यो ! तुम (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (विश्वहा) सब दिन (रथाय) विमान आदि यानसमूह की सिद्धि के लिये (सातिम्) अलग विभाग करना और (अवते) उत्तम अश्व के लिये (सातिम्) अलग-अलग घोड़ों की सिखावट को (आ, तक्षत) सब प्रकार से सिद्ध करो और (पृतनासु) सेनाओं में (सातिम्) विद्यादि उत्तम-उत्तम पदार्थ वा (जामिम्) प्रसिद्ध और (अजामिम्) अप्रसिद्ध (सक्षणिम्) सहन करनेवाले शत्रु को जीतके (नः) हमारे लिये (जैत्रीम्) जीत देनेहारी (सातिम्) उत्तम भक्ति को (सम्, महेत) अच्छे प्रकार प्रशंसित करो ॥ ३ ॥
भावार्थ
जो विद्वान् जन हमारी रक्षा करने और शत्रुओं को जीतनेहारे हैं, उनका सत्कार हम लोग निरन्तर करें ॥ ३ ॥
विषय
जैत्री साति
पदार्थ
१. हे (ऋभवः) = ज्ञानदीप्त पुरुषो ! आप ज्ञान के द्वारा (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (सातिम्) = सम्भजनीय अन्न व धन को आतक्षत सर्वथा बनाइए - प्राप्त कराइए । (सातिम्) = इस सम्भजनीय अन्न व धन को इसलिए प्राप्त कराइए कि (रथाय) = हम अपने शरीररूप रथ को सुन्दर बना सकें । हे (नरः) = हमारा नेतृत्व करनेवाले ऋभुओ ! (सातिम्) = हमें सम्भजनीय अन्न व धन को (अर्वते) = इस शरीर - रथ में जुतनेवाले अश्वों के लिए प्राप्त कराइए । उत्तम अन्न व धनों से हम शरीर व इन्द्रियों को उत्तम बना सकें ।
२. हे ऋभुओ ! आप (नः) = हमारी (जैत्रीम्) = विजयशील विजयप्राप्ति की साधनभूत (सातिम्) = अन्न व धन की प्राप्ति को (विश्वहा) = सदा (सम्महेत) = पूजित कीजिए । यह अन्न व धन की प्राप्ति (पृतनासु) = संग्रामों में (जामिम्) = बन्धु को व (अजामिम्) = अबन्धु को - सभी को (सक्षणिम्) = पराभूत करनेवाली हो ।
भावार्थ
भावार्थ - हमारी अन्न व धन की प्राप्ति ऐसी हो जो हमारे शरीर व इन्द्रियों को उत्तम बनाए और हमें विजय प्राप्त कराए ।
विषय
विद्वानों के शिल्पियों के समान कर्तव्य ।
भावार्थ
हे (ऋभवः) विद्वान् अधिक धनाढ्य पुरुषो ! आप लोग (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (सातिम्) उत्तम भोग योग्य, सुखजनक नाना पदार्थ भली प्रकार (आतक्षत) बनाओ। हे (नरः) नायक पुरुषो आप लोग (रथाय) रथ प्राप्त करने के लिये और (अर्वते) अश्व प्राप्त करने के लिये (सातिं आतक्षत) भोग योग्य धन पैदा करो । ( जामिम् ) बन्धु और (अजामिम्) उससे भिन्न शत्रु को भी ( पृतनासु) संग्रामों में ( सक्षणिम् ) जीत लेने वाले ( जैत्रीं ) विजय देने वाले ( नः सातिं ) हमारे धन सामग्री को (विश्वहा) सब दिन सब कोई ( सं महेत ) आदर करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कुत्स आङ्गिरस ऋषिः ॥ ऋभवो देवता ॥ छन्दः-१-४ जगती । ५ त्रिष्टुप् ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे विद्वान आमचे रक्षण करणारे व शत्रूंना जिंकणारे आहेत त्यांचा सत्कार आम्ही सदैव करावा. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Rbhus, leaders of science and commanders of the forces, create and refine the wealth of the nation for us. Create speed and power for the chariot, and strength and speed for movement and transport. Create and heighten our capacity for victory and advancement over the challenging enemy known or unknown, equal or unequal, in the battles of life.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How are Ribhus is taught further in the third Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Ribhus (geniuses-leaders of knowledge or learned persons) bestow upon us the gift of knowledge. Bestow upon us ample sustenance for the construction of aircraft and other chariots. Bestow upon us the knowledge for the welfare of horses. Let every one daily acknowledge our victorious wealth, and may we triumph in battles over our mighty foes whether they are well-known or otherwise.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(सातिम्) विद्यादिदानम् = The gift of knowledge etc. (सातिम्) संविभागम् अश्वशिक्षाविभागम् = Division or department. Tr. (जामिम्) प्रसिद्धम् = Well-known. (आजामिम्) अप्रसिद्धं वैरिणम् = An enemy who is not so well-known.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Let us always honor those learned persons who are our protectors and conquerors of all enemies. (Whether internal and external).
Translator's Notes
The word साति is derived from षणु-दाने and संभक्तौ hence the two different meanings given by Rishi Dayananda Sarasvati as quoted above, The Jami (जामि ) is derived from अनीप्रादुर्भावे hence the meaning of प्रसिद्धं or well-known as given by Rishi Dayananda. It is remarkable that Sayanacharya has interpreted रथाय as रहण शीलायपुखादये = for active children besides अश्वायैव वा horses.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal