ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 133/ मन्त्र 3
ऋषिः - परुच्छेपो दैवोदासिः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अवा॑सां मघवञ्जहि॒ शर्धो॑ यातु॒मती॑नाम्। वै॒ल॒स्था॒न॒के अ॑र्म॒के म॒हावै॑लस्थे अर्म॒के ॥
स्वर सहित पद पाठअव॑ । आ॒सा॒म् । म॒घ॒ऽव॒न् । ज॒हि॒ । शर्धः॑ । या॒तु॒ऽमती॑नाम् । वै॒ल॒ऽस्था॒न॒के । अ॒र्भ॒के । म॒हाऽवै॑लस्थे । अ॒र्भ॒के ॥
स्वर रहित मन्त्र
अवासां मघवञ्जहि शर्धो यातुमतीनाम्। वैलस्थानके अर्मके महावैलस्थे अर्मके ॥
स्वर रहित पद पाठअव। आसाम्। मघऽवन्। जहि। शर्धः। यातुऽमतीनाम्। वैलऽस्थानके। अर्भके। महाऽवैलस्थे। अर्मके ॥ १.१३३.३
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 133; मन्त्र » 3
अष्टक » 2; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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अष्टक » 2; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः शत्रुसेनाः कथं हन्तव्या इत्याह ।
अन्वयः
हे मघवन् अर्मके वैलस्थानक इवार्मके महावैलस्थ आसां यातुमतीनां शर्धोऽव जहि ॥ ३ ॥
पदार्थः
(अव) (आसाम्) वक्ष्यमाणानाम् (मघवन्) परमधनयुक्त (जहि) (शर्धः) बलम् (यातुमतीनाम्) हिंस्राणां सेनानाम्। (वैलस्थानके) वैलानि विलयुक्तानि स्थानानि यस्मिँस्तँस्मिन् (अर्मके) दुःखप्रापके (महावैलस्थे) महागर्त्तयुक्ते (अर्मके) दुःखप्रापके ॥ ३ ॥
भावार्थः
सेनावीरैः शत्रुसेना अतिदुर्गे गर्तादियुक्ते स्थले निपात्य हन्तव्या ॥ ३ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर शत्रुओं की सेना कैसे मारनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (मघवन्) परम धनयुक्त राजन् ! (अर्मके) जो दुःख पहुँचाने हारा और (वैलस्थानके) जिसमें विलयुक्त स्थान हैं उनके समान (अर्मके) दुःख पहुँचानेहारे (महावैलस्थे) बड़े-बड़े गढ़ेलों से युक्त स्थान में (आसाम्) इन (यातुमतीनाम्) हिंसक सेनाओं के (शर्धः) बल को (अव, जहि) छिन्न-भिन्न करो ॥ ३ ॥
भावार्थ
सेनावीरों को चाहिये कि शत्रुओं को सेनाओं को अतीव दुःख से जाने योग्य गढ़ेले आदि से युक्त स्थान में गिरा कर मारें ॥ ३ ॥
विषय
वासनाओं का स्थान श्मशान में
पदार्थ
१. हे मघवन्-ज्ञानैश्वर्य सम्पन्न प्रभो! आप आसाम् इन यातुमतीनाम्-पीड़ा का आधान करनेवाली वासनाओं के शर्धः-बल को अवजहि सुदूर विनष्ट कीजिए। ज्ञानाग्नि में वासनाओं का दहन होता है, प्रभु की ज्ञानाग्नि से ये दग्ध हो जाएँ। २. ज्ञानाग्नि से दग्ध हुई ये वासनाएँ अर्मके = (शवैररणीये) मृतों से प्राप्त करने योग्य वैलस्थानके श्मशान में शयन करें। महावैलस्थे=महान् श्मशान के अर्मके कुत्सित स्थान में इन वासनाओं की स्थिति हो । 'श्मशान में' इसलिए कि ये फिर लौटें नहीं। जो श्मशान में पहुँचा बस लौटा नहीं। इसी प्रकार ये वासनाएँ वहीं पहुँचें, जाएँ और जाएँ ही, वापस न आएँ। वहीं दग्ध हो जाएँ।
भावार्थ
भावार्थ - ज्ञानाग्निदग्ध वासनाओं का निवास श्मशान में हो। ये श्मशान तुल्य कुत्सित स्थान में रहें । हमें ये वासनाएँ छोड़ जाएँ।
विषय
पक्षान्तर में अध्यात्म में वासनाओं को क्षय करके शान्ति लाभ करने का उपदेश ।
भावार्थ
हे राजन् ! ( अर्मके वैलस्थानके ) जिस प्रकार पीड़ादायी व्यक्तियों को दुःखदायी छोटे से, बिल के समान बने कैदखाने में डाल दिया जाता है उसी प्रकार ( आसाम् ) इन ( यातुमतीनाम् ) पीड़ा दायक शस्त्रास्त्रों वाली सेनाओं के ( शर्धः ) प्रवल बल को ( अर्मके ) कष्टदायी ( महावैलस्थै ) बड़े भारी गढ़ों से युक्त ऊंचे नीचे खड्डों से भरे स्थान में डाल कर, या फांस कर ( अप जहि ) उसका नाश कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
परुच्छेप ऋषि: ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः– १ त्रिष्टुप् । २, ३ निचृद्रनुष्टुप् । ४ स्वराडनुष्टुप् । ५ आर्षी गायत्री । ६ स्वराड् ब्राह्मी जगती । ७ विराडष्टिः ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
सेनेतील वीरांनी शत्रूसेनेला भयंकर दरीमध्ये ढकलून मारून टाकावे. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, maghavan, lord of world power and wealth, break down and destroy the force of the evil- minded and throw them out deep into the vault of darkness, into the hideous world of sin and death.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should the armies of the enemies be slain is told in the third Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Commander of the Army, possessor of much admirable wealth, annihilate the might of malignant hosts, hurl them into the vile pit, the vast and vile pit or fort.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(अर्मके) दुःख प्रापके = Causing misery or suffering. (महावैलस्थे) महागर्तयुक्ते = Having great pits.
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