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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 86 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 86/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - मरुतः छन्दः - पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    य॒ज्ञैर्वा॑ यज्ञवाहसो॒ विप्र॑स्य वा मती॒नाम्। मरु॑तः शृणु॒ता हव॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒ज्ञैः । वा॒ । य॒ज्ञ॒ऽवा॒ह॒सः॒ । विप्र॑स्य । वा॒ । म॒ती॒नाम् । मरु॑तः । शृ॒णु॒त । हव॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यज्ञैर्वा यज्ञवाहसो विप्रस्य वा मतीनाम्। मरुतः शृणुता हवम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यज्ञैः। वा। यज्ञऽवाहसः। विप्रस्य। वा। मतीनाम्। मरुतः। शृणुत। हवम् ॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 86; मन्त्र » 2
    अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

    अन्वयः

    हे यज्ञवाहसो ! यूयं मरुत इव स्वकीयैर्यज्ञैः परकीयैर्वा विप्रस्य मतीनां वा हवं शृणुत ॥ २ ॥

    पदार्थः

    (यज्ञैः) अध्ययनाध्यापनोपदेशनाऽऽदिभिः (वा) पक्षान्तरे (यज्ञवाहसः) यज्ञान् वोढुं शीलं येषां तत्सम्बुद्धौ (विप्रस्य) मेधाविनः (वा) पक्षान्तरे (मतीनाम्) विदुषां मनुष्याणाम् (मरुतः) परीक्षका विपिश्चितः (शृणुत) (हवम्) परीक्षितुमर्हमध्ययनमध्यापनं वा ॥ २ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्विज्ञानविज्ञापनाख्यैः क्रियाजन्यैर्वा यज्ञैः सह वर्त्तमाना भूत्वाऽन्यान् मनुष्यानेतैर्योजयित्वा यथावत्सुपरीक्ष्य विद्वांसो निष्पादनीयाः ॥ २ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

    पदार्थ

    हे (यज्ञवाहसः) सत्सङ्गरूप प्रिय यज्ञों को प्राप्त करानेवाले विद्वानो ! तुम लोग (मरुतः) वायु के समान (यज्ञैः) अपने (वा) पराये पढ़ने-पढ़ाने और उपदेशरूप यज्ञों से (विप्रस्य) विद्वान् (वा) वा (मतीनाम्) बुद्धिमानों के (हवम्) परीक्षा के योग्य पठन-पाठनरूप व्यवहार को (शृणुत) सुना कीजिये ॥ २ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को योग्य है कि जानने-जनाने वा क्रियाओं से सिद्ध यज्ञों से युक्त होकर, अन्य मनुष्यों को युक्त करा, यथावत्परीक्षा करके विद्वान् करना चाहिये ॥ २ ॥

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    विषय

    यज्ञशील व ज्ञानी

    पदार्थ

    १. हे (मरुतः) = प्राणो! आप (वा) = या तो (यज्ञैः) = 'देवपूजा, संगतिकरण व दानरूप' उत्तम कर्मों से (यज्ञवाहसः) = उस पूज्य प्रभु का वहन करनेवाले [यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवाः], (विप्रस्य) = कमियों को दूर करके अपना पूरण करनेवाले पुरुष की (हवम्) = प्रार्थना को (शृणुत) = सुनते हो । (वा) = या (मतीनाम्) = मननशील ज्ञानी पुरुषों की पुकार को सुनते हो । २. जिस प्रकार एक विशिष्ट भोजन के सेवन से कोई व्यक्ति खुब पुष्ट शरीरवाला हो जाता है तो कहा जाता है कि 'भोजन तो इसको अनुकूल पड़ा' अथवा 'भोजन ने इसकी बात सुनी' । इसी प्रकार यहाँ 'प्राणों ने इसकी पुकार सुनी' यह वाक्यविन्यास तब प्रयुक्त होता है जबकि एक व्यक्ति [क] यज्ञशील बनकर प्रभु की उपासना करता हुआ अपनी कमियों को दूर करता है अथवा [ख] खूब ज्ञानसम्पन्न बनता है । वस्तुतः प्राणसाधना के ये दो परिणाम है कि मनुष्य यज्ञशील बनता है और बुद्धि को अत्यन्त तीव्र कर पाता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ = हम प्राणसाधना करेंगे तो हमारी यज्ञवृत्ति का विकास होगा और तीव्रबुद्धि बनकर हम ज्ञान का संग्रह कर पाएंगे ।

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    विषय

    विद्वानों, वीर भटों तथा मरुतों का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे ( यज्ञवाहसः ) यज्ञों, उत्तम कर्मों, सत्संगों और ज्ञान के श्रवण और प्रवचन को स्वयं धारण करने और अन्यों को प्राप्त कराने वाले ( मरुतः ) देह में प्राण के समान राष्ट्र में जीवन धारण कराने हारो ! आप लोग ( यज्ञैः ) पूर्व कहे उत्तम २ कर्मों द्वारा ( वा ) और अन्यान्य परोपकार के कार्यों द्वारा ( विप्रस्य ) विद्वान् पुरुष के और ( मतीनां वा ) मननशील पुरुषों के ( हवम् ) उपदेशों को (शृणुता) श्रवण करो और कराओ ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतमो राहूगण ऋषिः ॥ मरुतो देवता ॥ छन्दः–१, ४, ८, ९ गायत्री । २, ३, ७ पिपीलिका मध्या निचृद्गायत्री । ५, ६, १० निचृद्गायत्री ॥ दशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी अध्ययन, अध्यापन, उपदेश व सत्संग क्रियारूपी यज्ञांनी युक्त होऊन इतर माणसांना त्यात युक्त करावे व योग्य परीक्षा घेऊन विद्वान करावे. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Maruts, carriers and promoters of universal yajna by various acts of yajna in nature and society, listen to the prayer and invocations of the pious and intelligent people and promote their acts of holiness.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How should a house holder be is taught further in the second Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O performers and up holders of Yajnas, hear the call of a wise man or of highly learned persons like the scholars who examine well or weigh the pros and cons of every question, with the Yajnas performed by you or others in the form of study and teaching of the Vedas etc.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (यज्ञैः) अध्ययनाध्यापनोदेशनादिभिः = Through the Yajnas in the form of learning, teaching and preaching etc. (मरुतः) परीक्षका विपश्चित: = Learned persons who are good examiners, who are men of discrimination and discretion.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should be engaged in the performance of Yajnas in the form of learning and teaching and preaching various sciences or others also to perform them and then after properly examining them, they should make them good scholars.

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